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________________ एस धम्मो सनंतनो सब्बवोसितवोसानं तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ।।३२९।। धम्मपद के अंतिम सूत्रों का दिन आ गया! -लंबी थी यात्रा, पर बड़ी प्रीतिकर थी। मैं तो चाहता था-सदा चले। बुद्ध के साथ उठना, बुद्ध के साथ बैठना; बुद्ध की हवा में डोलना, बुद्ध की किरणों को पकड़ना; फिर से जीना उस शाश्वत पुराण को; बुद्ध और बुद्ध के शिष्यों के बीच जो अपूर्व घटनाएं घटीं, उन्हें फिर से समझना-बूझना-गुनना; उन्हें फिर हृदय में बिठालना-यात्रा अदभुत थी। ____ पर यात्रा कितनी ही अदभुत हो, जिसकी शुरुआत है, उसका अंत है। हम कितना ही चाहें, तो भी यहां कछ शाश्वत नहीं हो सकता। यहां बद्ध भी अवतरित होते हैं और विलीन हो जाते हैं। औरों की तो बात ही क्या! यहां सत्य भी आता है, तो ठहर नहीं पाता। क्षणभर को कौंध होती है, खो जाता है। यहां रोशनी नहीं उतरती, ऐसा नहीं। उतरती है। उतर भी नहीं पाती कि जाने का क्षण आ जाता है। बुद्ध ने ठीक ही कहा है-यहां सभी कुछ क्षणभंगुर है। बेशर्त, सभी कुछ क्षणभंगुर है। और जो इस क्षणभंगुरता को जान लेता है, उसका यहां आना बंद हो जाता है। हम तभी तक यहां टटोलते हैं, जब तक हमें यह भ्रांति होती है कि शायद क्षणभंगुर में शाश्वत मिल जाए। शायद सख में आनंद मिल जाए। शायद प्रेम में प्रार्थना मिल जाए। शायद देह में आत्मा मिल जाए। शायद पदार्थ में परमात्मा मिल जाए। शायद समय में हम उसे खोज लें, जो समय के पार है। पर जो नहीं होना, वह नहीं होना। जो नहीं होता, वह नहीं हो सकता है। यहां सत्य भी आता है, तो बस झलक दे पाता है। इस जगत का स्वभाव ही क्षणभंगुरता है। यहां शाश्वत भी पैर जमाकर खड़ा नहीं हो सकता! यह धारा बहती ही रहती है। यहां शुरुआत है; मध्य है; और अंत है। और देर नहीं लगती। और जितनी जीवंत बात हो, उतने जल्दी समाप्त हो जाती है। पत्थर तो देर तक पड़ा रहता है। फूल सुबह खिले, सांझ मुरझा जाते हैं। यही कारण है कि बुद्धों के होने का हमें भरोसा नहीं आता। क्षणभर को रोशनी उतरती है, फिर खो जाती है। देर तक अंधेरा-और कभी-कभी रोशनी प्रगट होती है। सदियां बीत जाती हैं, तब रोशनी प्रगट होती है। पुरानी याददाश्तें भूल जाती हैं, तब रोशनी प्रगट होती है। फिर हम भरोसा नहीं कर पाते। ___ यहां तो हमें उस पर ही भरोसा ठीक से नहीं बैठता, जो रोज-रोज होता है। यहां चीजें इतनी स्वप्नवत हैं! भरोसा हो तो कैसे हो। और जो कभी-कभी होता है सदियों में, जो विरल है, उस पर तो कैसे भरोसा हो! हमारे तो अनुभव में पहले कभी नहीं हुआ था, और हमारे अनुभव में शायद फिर कभी नहीं होगा। 274
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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