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अप्प दीपो भव!
दूसरा प्रश्न:
भगवान बुद्ध ने कहा है: अपने दीए आप बनो। तो क्या सत्य की खोज में किसी भी सहारे की कोई जरूरत नहीं है?
| यह जानने को भी तो तुम्हें बुद्ध के पास जाना पड़ेगा न!-अपने दीए आप
बनो। इतनी ही जरूरत है गुरु की। गुरु तुम्हारी बैसाखी नहीं बनने वाला है। जो बैसाखी बन जाए तुम्हारी, वह तुम्हारा दुश्मन है, गुरु नहीं है। क्योंकि जो बैसाखी बन जाए तुम्हारी, वह तुम्हें सदा के लिए लंगड़ा कर देगा। और अगर बैसाखी पर तुम निर्भर रहने लगे, तो तुम अपने पैरों को कब खोजोगे? अपनी गति कब खोजोगे? अपनी ऊर्जा कब खोजोगे?
जो तुम्हें हाथ पकड़कर चलाने लगे, वह गुरु तुम्हें अंधा रखेगा। जो कहे : मेरा तो दीया जला है; तुम्हें दीया जलाने की क्या जरूरत? देख लो मेरी रोशनी में। चले आओ मेरे साथ। उस पर भरोसा मत करना। क्योंकि आज नहीं कल रास्ते अलग हो जाएंगे। कब रास्ते अलग हो जाएंगे, कोई भी नहीं जानता। कब मौत आकर बीच में दीवाल बन जाएगी, कोई भी नहीं जानता। तब तुम एकदम घुप्प अंधेरे में छूट जाओगे। गुरु की रोशनी को अपनी रोशनी मत समझ लेना।
ऐसी भूल अक्सर हो जाती है।
सूफियों की कहानी है कि दो आदमी एक रास्ते पर चल रहे हैं। एक आदमी के हाथ में लालटेन है। और एक आदमी के हाथ में कोई लालटेन नहीं है। कुछ घंटों तक वे दोनों साथ-साथ चलते रहे हैं। आधी रात हो गयी। मगर जिसके हाथ में लालटेन नहीं है, उसे इस बात का खयाल भी पैदा नहीं होता कि मेरे हाथ में लालटेन नहीं है। जरूरत क्या है? दूसरे आदमी के हाथ में लालटेन है। और रोशनी पड़ रही है। और जितना जिसके हाथ में लालटेन है उसको रोशनी मिल रही है, उतनी उसको भी मिल रही है जिसके हाथ में लालटेन नहीं है। दोनों मजे से गपशप करते चले जाते हैं। फिर वह जगह आ गयी, जहां लालटेन वाले ने कहाः अब मेरा रास्ता तुमसे अलग होता है। अलविदा। फिर घुप्प अंधेरा हो गया।
आज नहीं कल गुरु से विदा हो जाना पड़ेगा। या गुरु विदा हो जाएगा। सदगुरु वही है, जो विदा होने के पहले तुम्हारा दीया जलाने के लिए तुम्हें सचेत करे। इसलिए बुद्ध ने कहा है : अप्प दीपो भव। अपने दीए खुद बनो। यह भी जिंदगीभर कहा, लेकिन नहीं सुना लोगों ने। जिन्होंने सुन लिया, उन्होंने तो अपने दीए जला लिए। लेकिन कुछ इसी मस्ती में रहे कि करना क्या है! बुद्ध तो हैं।
__ आनंद से कही है यह बात उन्होंने। आनंद भी उन्हीं नासमझों में एक था, जो बुद्ध की रोशनी में चालीस साल तक चलता रहा। स्वभावतः, चालीस साल तक
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