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________________ एस धम्मो सनंतनो ये चारों तुम्हारे भीतर हैं। देह तुम्हारे भीतर है । मन तुम्हारे भीतर है। आत्मा तुम्हारे भीतर । परमात्मा तुम्हारे भीतर । अगर तुमने अपने ध्यान को देह पर लगा दिया, तो तुम शूद्र हो गए। स्वभावतः, बच्चे सभी शूद्र होते हैं। क्योंकि बच्चों से यह आशा नहीं की जा सकती कि वे देह से ज्यादा गहरे में जा सकेंगे। मगर बूढ़े अगर शूद्र हों, तो अपमानजनक है। बच्चों के लिए स्वाभाविक है । अभी जिंदगी जानी नहीं, तो जो पहली पर्त है, उसी को पहचानते हैं। लेकिन बूढ़ा अगर शूद्र की तरह मर जाए, तो निंदा-योग्य है। सब शूद्र की तरह पैदा होते हैं, लेकिन किसी को शूद्र की तरह मरने की आवश्यकता नहीं है। अगर तुमने अपने रेडियो को वैश्य के स्टेशन पर लगा दिया; तुमने अपने ध्यान को वासना - तृष्णा में लगा दिया, लोभ में लगा दिया, तो तुम वैश्य हो जाओगे। तुमने अगर अपने ध्यान को संकल्प पर लगा दिया, तो क्षत्रिय हो जाओगे। तुमने अपने ध्यान को अगर समर्पण में डुबा दिया, तो तुम ब्राह्मण हो जाओगे । ध्यान कुंजी है। कुछ भी बनो, ध्यान कुंजी है । शूद्र के पास भी एक तरह का ध्यान है। उसने सारा ध्यान शरीर पर लगा दिया। अब जो स्त्री दर्पण के सामने घंटों खड़ी रहती है—बाल संवारती है; धोती संवारती है; पावडर लगाती है - यह शूद्र है । ये जो दो-तीन घंटे दर्पण के सामने गए, ये शूद्रता में गए। इसने सारा ध्यान शरीर पर लगा दिया है। यह राह पर चलती भी है, तो शरीर पर ही इसका ध्यान है। यह दूसरों को भी देखती है, तो शरीर पर ही इसका ध्यान होगा। जब यह अपने शरीर को ही देखती है, तो दूसरे के शरीर को ही देखेगी । और कुछ नहीं देख पाएगी। यह अगर अपनी साड़ी को घंटों पहनने में रस लेती है, तो बाहर निकलेगी, तो इसको हर स्त्री की साड़ी दिखायी पड़ेगी और कुछ दिखायी नहीं पड़ेगा। जो व्यक्ति बैठा-बैठा सोचता है कि एक बड़ा मकान होता; एक बड़ी कार होती; बैंक में इतना धन होता – क्या करूं? कैसे करूं ? वह अपने ध्यान को वैश्य पर लगा रहा है। धीरे-धीरे ध्यान वहीं ठहर जाएगा। और अक्सर ऐसा हो जाता है कि अगर तुम एक ही रेडियो में एक ही स्टेशन सदा सुनते हो, तो धीरे-धीरे तुम्हारे रेडियो का कांटा उसी स्टेशन पर ठहर जाएगा; जड़ हो जाएगा। अगर तुम दूसरे स्टेशन को कभी सुने ही नहीं हो और आज अचानक सुनना भी चाहो, तो शायद पकड़ न सकोगे। क्योंकि हम जिस चीज का उपयोग करते हैं, वह जीवित रहती है। और जिसका उपयोग नहीं करते, वह मर जाती है । इसलिए कभी-कभी जब सुविधा बने शूद्र से छूटने की, तो छूट जाना । वैश्य से छूटने की, तो छूट जाना । जब सुविधा मिले, तो कम से कम - ब्राह्मण दूर - कम से कम थोड़ी देर को क्षत्रिय होना; संकल्प को जगाना । और कभी-कभी मौके जब आ जाएं, चित्त प्रसन्न हो, प्रमुदित हो, प्रफुल्लित हो, तो कभी - कभी क्षणभर को 190
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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