________________
बुद्धत्व का आलोक
ये ही लोग थे। ये ही दिन थे। कुछ फर्क नहीं पड़ता दुनिया में बाहर। दुनिया वही की वही है। वैसी की वैसी है। लेकिन बूढ़ा रंग भरने लगता है अपने अतीत में। सब बूढ़े भरते हैं।
लेकिन अगर कोई आत्मघात करने जाए, तब तो पीछे भी लौटकर नहीं सोच सकता। अब तो सोचना ही समाप्त हुआ। आखिरी घड़ी आ गयी। अपने हाथ से मिटने जा रहा है। अब विचार के लिए उपाय नहीं है; सपने के लिए उपाय नहीं है।
तो मन न रहा होगा मौजूद! और इस अंधेरी रात में किसी हाथ का कंधे पर पड़ना। एकदम चौंका होगा। यहां कौन? लौटकर देखा होगा। ज्योतिर्मय रूप था। जिसको बुद्ध देखने के लिए कह रहे थे बार-बार–कि तू उसे देख, जो मैं वस्तुतः हूं-आज इस मृत्यु की घड़ी में सामने खड़ा हो गया था।
यह बुद्ध की पार्थिव देह नहीं थी। बौद्धशास्त्र गलत कहते हैं। बौद्धशास्त्र कहते हैं कि बुद्ध खुद ही वहां आकाश-मार्ग से उड़कर खड़े हो गए थे। नहीं; यह बुद्ध की अंतर्देह थी। यह बुद्ध की अंतरात्मा थी। यह बुद्ध का बुद्धत्व था, जो वहां खड़ा हुआ था। अगर चमड़े की ही देह खड़ी होती, तो मैं तुमसे पक्का कहता हूं: वक्कलि फिर चूक जाता। ___आज उसने शास्ता को वैसा नहीं देखा, जैसा वह सदा देखता था; पर ऐसा देखा जैसा शास्ता चाहते थे कि देखे। आज उसने शास्ता की देह नहीं, शास्ता को देखा। आज उसने धर्म को जीवंत सामने खड़ा पाया। वह महाकरुणा बरसती हुई; वह प्रसाद, वह शीतल बरसा; वह अमृत का मेघ! एक नयी प्रीति उसमें उमगी-ऐसी प्रीति जो बांधती नहीं, मुक्त करती है।
प्रेम दो तरह के होते हैं। जब प्रेम शूद्र जैसा प्रेम होता है, शूद्र का प्रेम होता है, तो बांधता है। क्षुद्र का प्रेम बांधता है, क्योंकि क्षुद्र का प्रेम तुम्हें भी क्षुद्र बना देगा। जैसा प्रेम करोगे, जिससे प्रेम करोगे, जिस ढंग से करोगे, वैसे हो जाओगे।
प्रेम बड़ी कीमिया है, सोच-समझकर करना। प्रेम करना हो, तो विराट से करना। प्रेम करना हो, तो आकाश से करना। प्रेम करना हो, तो असीम से करना। क्योंकि जिससे तुम प्रेम करोगे, वैसे ही तुम हो जाओगे। क्षुद्र से करोगे, क्षुद्र हो जाओगे। खयाल रखना, प्रेम रूपांतरकारी है। प्रेम एकमात्र रसायन है।
आज एक नयी प्रीति उमड़ी। अब तक जो प्रीति जानी थी, देह की थी। शूद्र मन की थी। आज ब्राह्मण पैदा हुआ। वक्कलि आज ब्राह्मण हुआ। ब्राह्मण-कुल में पैदा हुआ था, उस समय नहीं। आज बुद्ध के कुल में पैदा होकर ब्राह्मण हुआ। आज बुद्ध-कुल में जन्मा। आज नया जन्म हुआ। द्विज हुआ।
इसलिए तो ब्राह्मण को द्विज कहते हैं। लेकिन सभी ब्राह्मण द्विज नहीं होते। सभी द्विज जरूर ब्राह्मण होते हैं। फिर द्विज चाहे जीसस हों, चाहे मोहम्मद सभी द्विज ब्राह्मण होते हैं।
161