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एस धम्मो सनंतनो
से पहचानो। ताकि इसकी व्यर्थता को देखकर तुम भीतर की सीढ़ियां उतरने लगो । सौंदर्य भीतर है, बाहर नहीं । सौंदर्य स्वयं में है । और जिस दिन तुम्हारे भीतर सौंदर्य उगेगा, उस दिन सब सुंदर हो जाता है। तुम जैसे, वैसी दुनिया हो जाती है। जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि।
तुम सुंदर हो जाओ। पत्नी को सुंदर करने की फिकर छोड़ो। तुम सुंदर हो जाओ। और तुम्हारे सुंदर होने का अर्थ, कोई प्रसाधन के साधनों से नहीं; ध्यान सुंदर करता है। ध्यान ही सत्यं शिवं सुंदरम् का द्वार बनता है।
जैसे-जैसे ध्यान गहरा होगा, वैसे-वैसे तुम पाओगे : तुम्हारे भीतर एक अपूर्व सौंदर्य लहरें ले रहा है। इतना सौंदर्य कि तुम उंडेल दो, तो सारा जगत सुंदर हो जाए। मुझसे तुम उस सौंदर्य की बात पूछो। इस तरह के व्यर्थ प्रश्न न लाओ, अच्छा है।
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आज इतना ही।