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एस धम्मो सनंतनो
तीसरा प्रश्नः
प्यारे भगवान! सत्य क्या है? क्या ललित और बच्चे सत्य हैं? क्या आप सत्य हैं? क्या धर्म सत्य है? या क्या जो मैं समझती हूं, वह सत्य है? आप स्पष्ट करें कि सत्य क्या है?
| पूछा है तरु ने।
तरु! न तो ललित और बच्चे सत्य हैं; क्योंकि ललित और बच्चों से मिलना नदी-नाव-संयोग है। तू तो पहले भी थी। ललित और बच्चे भी पहले थे; इस जन्म के पहले भी थे। लेकिन तुम्हारा कभी मिलना न हुआ था। तू भी आगे रहेगी; ललित
और बच्चे भी आगे रहेंगे। लेकिन फिर दुबारा शायद मिलना न हो। या हो भी, तो पहचान नहीं रहेगी कि कौन ललित है; कौन बच्चे हैं; कौन मैं हं!
इस संसार के रास्ते पर हम सब अजनबी हैं। घड़ीभर का मिलना है, फिर रास्ते अलग हो जाते हैं। घड़ीभर साथ चल लेते हैं, इसी से संसार बसा लेते हैं। फिर रास्ते अलग हो जाते हैं। जब कोई मरता है, तो उसका रास्ता अलग हो गया। फिर अलविदा देने के सिवाय कोई मार्ग नहीं है। फिर दुबारा तुम उसे खोज भी पाओगे अनंतकाल में असंभव है।
इसलिए न तो बच्चे सत्य हैं, न पति सत्य है, न पत्नी सत्य है, न भाई, न बहन, न मां, न बाप। संबंध हैं ये, सत्य नहीं। संबंध भी क्षणभंगुर हैं।
फिर पूछा है : 'क्या आप सत्य हैं?'
थोड़ा ज्यादा सत्य हूं। जितना पति-पत्नी का संबंध होता है, उससे गुरु-शिष्य का संबंध थोड़ा ज्यादा सत्य है। क्योंकि पति-पत्नी का संबंध देह पर चुक जाता है। या अगर बहुत गहरा जाए, तो मन तक जाता है।
गुरु-शिष्य का संबंध मन से शुरू होता है और अगर गहरा चला जाए, तो आत्मा तक जाता है। लेकिन फिर भी कहता हूं: थोड़ा ज्यादा सत्य है। क्योंकि गुरु-शिष्य का संबंध भी परमात्मा तक नहीं जाता; आत्मा तक ही जाता है। और जाना है तुम्हें परमात्मा तक, इसलिए एक दिन गुरु को भी छोड़ देना पड़ता है। आत्मा की सीमा आयी, उस दिन गुरु गया।
इसलिए बुद्ध ने कहा है : अगर मैं भी तुम्हें राह पर मिल जाऊं, तो मेरी गरदन काट देना। राह पर मिल जाऊं अर्थात अगर तुम्हारे और तुम्हारे परमात्मा के बीच में आने लगू, तो मुझे हटा देना।
गुरु द्वार बने, तो ठीक। द्वार का मतलब ही होता है कि उसके पार जाना होगा। द्वार पर कोई रुका थोड़े ही रहता है! द्वार पर कितनी देर खड़े रहोगे? द्वार कोई रुकने की जगह थोड़े ही है। उससे तो प्रवेश हुआ और आगे गए।
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