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________________ ओशो किसी एक धर्मविशेष से स्वयं को जोड़ना नहीं चाहते, फिर भी तथागत बद्ध के प्रति उनके मन में असीम प्रेम भाव विद्यमान है। उन्होंने अंधश्रद्धा के नकाब को बड़ी निर्दयता से फाड़ डाला है। संकुचित विश्वासों के बूंघट उठा डाले। __ वे कहते हैं, “मैं किसी धर्म का विरोध नहीं करना चाहता, बल्कि मैं लोगों को उनके अंधविश्वास में से निकाल कर उनको एक समझ देना चाहता हूं। केवल तभी हम आराम से, सुख से और सहजता से जी सकते हैं, और तभी यह पृथ्वी स्वर्ग बन सकती है।" . उन्होंने किसी धर्मविशेष के लोगों को आकर्षित करने के बजाय अखिल मानवता के प्रतीकस्वरूप आम आदमी को गले से लगाने के लिए अपनी बांह फैलाई है। नेपाली बौद्ध भिक्षुओं के लिए संदेश मांगने वाले एक बौद्ध भिक्षु को उन्होंने जो जवाब दिया, वह उनकी अखिल मानवता के प्रति प्रेम और विशालता का प्रतीक सा नजर आता है। वे कहते हैं, “मेरा संदेश विशेष रूप से बौद्धों या ईसाइयों या हिंदुओं के लिए नहीं हो सकता। मेरा संदेश केवल मनुष्यों के लिए है, क्योंकि मैं इस विभाजन को नहीं मानता। तुम्हें स्वयं बुद्ध बनना है। तुम्हें उसी अवस्था पर पहुंचना है जहां गौतम बुद्ध स्वयं पहुंचे थे।"
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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