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________________ एस धम्मो सनंतनो आज ही चाहिए। वह कहती है, कल, परसों। टालती है। वह उपाय है। जब तक तुम मेरे पास आओगे, समस्या गयी! तुम्हारी भी गयी; मेरी भी गयी! धीरे-धीरे तुम्हें यह समझ में आ जाएगा कि अगर तुम थोड़ा धीरज रखो, तो समस्याएं चली जाती हैं—अपने से चली जाती हैं। इसलिए अंग्रेजी में बीमार के लिए शब्द है-पेशेंट। पेशेंट का मतलब होता है जो पेशेंस रखे। बीमारी चली जाती है। धैर्य रखे। शब्द प्यारा है। धीरज रहे, तो सब चला जाता है। कहते हैं कि अगर सर्दी-जुकाम हो; दवा लो तो सात दिन में जाता है, और दवा न लो तो एक सप्ताह में। मगर जाता है। धीरज चाहिए। यह गया होगा। जब तक वृक्ष के पास पहुंचा, तब तक बात बदल गयी। बादल घिरे थे; अब छंट गए। सूरज निकल आया। इसने सोचा : अरे! मैं-और यह क्या कर रहा हूं! जब हल-बक्खर जोतता था, तो कौन सा सुखी था? दुख के सिवा कुछ भी न था। अब न हल-बक्खर जोतने पड़ते; न मेहनत करनी पड़ती। भिक्षा मांग लाता है। पहले से अच्छी रोटी मिल रही है। अच्छी दाल, अच्छी सब्जी मिल रही है। और बुद्ध का सत्संग। पहले तड़फता था। कब निकलेंगे? एक क्षणभर को देख पाता था। अब चौबीस घंटे उनकी सन्निधि है। यह मैं क्या कर रहा हूं? सोचा होगा कि इतनी बड़ी संपदा पाने चला हूं-बुद्धत्व; थोड़ा श्रम तो करना ही होगा। थोड़ा भीतर भी हल-बक्खर चलाना होगा। बुद्ध कहते थे: मैं भी किसान हूं। मैं भीतर की खेती-बाड़ी करता हूं। भीतर बीज बोता हूं। भीतर की फसल काटता हूं। ऐसे ही किसानों से बुद्ध ने कहा होगा यह, क्योंकि किसान किसान की भाषा समझे। सोचकर कि यह तो मैं गलत कर रहा हूं, यह तो मैं व्यर्थ कर रहा हूं; यह तो मैं किस दुर्भाग्य में सोचा कि वापस लौट जाऊं! नहीं, नहीं। ऐसा सोचकर, विचारकर फिर दृढ़-निश्चय हो वापस लौट आया। उसे अपनी मूढ़ता दिखी और पुनः संन्यास की उमंग से भर गया। __ फिर यह तो उसकी साधना ही हो गयी। क्योंकि कोई एक दिन आ गयी उदासी, चली गयी; ऐसा थोड़े ही है। बादल एक दिन घिरे और चले गए! बार-बार घिरे; बार-बार घिरे और बार-बार जाए। फिर तो उसे तरकीब हाथ लग गयी। फिर तो उसने सोचा ः यह अदभुत तरकीब है। जब भी झंझट आती, चले गए। जाकर देखा अपने नंगल को। उस नंगल को देखकर ही उसको अपने पुराने दिन सब साफ हो जाते, कि वहीं कौन सा सुख था। महानरक भोग रहे थे। उससे अब हालत बेहतर है। अब चीजें सुधर रही हैं और धीरे-धीरे शांति भी उतरती है। और कभी-कभी मन सन्नाटे से भी भर जाता है। और कभी-कभी बुद्ध जिस शून्य की बात करते हैं, उसकी थोड़ी सी 100
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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