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विराट की अभीप्सा
जो उस मूलस्रोत को देख लेता है—यह बुद्ध का वचन बड़ा अदभुत है-वह अमानुषी रति को उपलब्ध हो जाता है। वह ऐसे संभोग को उपलब्ध हो जाता है, जो मनुष्यता के पार है।
जिसको मैंने संभोग से समाधि की ओर कहा है, उसको ही बुद्ध अमानुषी रति कहते हैं।
एक तो रति है मनुष्य की-स्त्री और पुरुष की। क्षणभर को सुख मिलता है। मिलता है, या आभास होता है कम से कम। फिर एक और रति है, जब तुम्हारी चेतना अपने ही मूलस्रोत में गिर जाती है; जब तुम अपने से मिलते हो। एक तो रति है दसरे से मिलने की। और एक रति है अपने से मिलने की। जब तुम्हारा तुमसे ही मिलना होता है, उस क्षण जो महाआनंद होता है, वही समाधि है।
संभोग में समाधि की झलक है; समाधि में संभोग की पूर्णता है। _ 'जैसे-जैसे भिक्षु पांच स्कंधों-रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान-की उत्पत्ति और विनाश पर विचार करता है, वैसे-वैसे वह ज्ञानियों की प्रीति और प्रमोदरूपी अमृत को प्राप्त करता है।'
एक तो अज्ञानी का प्रेम है; एक ज्ञानी का प्रेम है। धन्यभागी हैं वे, जो ज्ञानी की प्रेम-दशा को पा लें। अभागे हैं वे, जो अज्ञानी के प्रेम में ही पड़े रहें और भटक जाएं।
इनके भेद को खयाल में लेना।
अज्ञान से भरा हुआ प्रेम क्या है? अज्ञान से भरा हुआ प्रेम ऐसा है, जिसमें प्रेम का कोई कण भी नहीं है। कुछ और ही है; बात कुछ और ही है। तुम अकेले होने में ऊबते हो, इसलिए किसी को प्रेम करते हो। कि अकेले होने में मजा नहीं आता है, अकेले होने में ऊब आती है, उदासी आती है; अकेले होने में घबड़ाहट होती है-किसी का साथ चाहिए। किसी का साथ तुम्हारे लिए एक जरूरत है। यह
अज्ञानी का प्रेम है। ___ज्ञानी का प्रेम क्या है ? ज्ञानी अकेले होने में परम आनंद से भरता है। अकेले होने में परेशान नहीं होता; अकेले होने में परम आनंद से भरता है। लेकिन इतने आनंद से भर जाता है कि अब उस आनंद को बांटना चाहता है; किसी को देना चाहता है।
अज्ञानी का प्रेम मांगता है; ज्ञानी का प्रेम देता है।
बुद्ध ने खूब दिया। समस्त सदगुरुओं ने दिया। मिलेगा, तो देना ही पड़ेगा। जब दीया जलेगा, तो रोशनी बिखरेगी। और जब फूल खिलेगा, तो सुगंध उड़ेगी हवाओं पर। इसे रोका नहीं जा सकता।
अज्ञानी का प्रेम कैसा है? अज्ञानी का प्रेम ऐसा है कि मिल जाए। भिखारी का प्रेम है। पति पत्नी से चाह रहा है कि कुछ दो। मैं अकेले में बड़ा उदास हो रहा हूं। मुझे कुछ रस दो। और पत्नी भी कह रही है कि मुझे कुछ रस दो। दोनों भिखारी एक-दूसरे से मांग रहे हैं; देने की तैयारी किसी की भी नहीं है। तो कलह तो होगी
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