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________________ एस धम्मो सनंतनो नहीं। लेकिन आदमी अपने को समझा लेता है। आदमी कहता है : कोई बात नहीं । तुम परेशान मत होओ। तुम परीशान न हो, बाबे-करम वा न करो और तुम्हारा कृपा रूपी दरवाजा मत खोलो। मत परेशान होओ। और कुछ देर पुकारूंगा, चला जाऊंगा । यह सांत्वना है, यह अपने को समझा लेना है कि मैं अपने से जा रहा हूं; तुम्हें कष्ट नहीं देना चाहता । एक तो इतनी हंसीं दूसरे ये आराइश एक तो तुम इतनी सुंदर, और फिर ऐसा श्रृंगार ! जो नजर पड़ती है, चेहरे पे ठहर जाती है। मुस्कुरा देती हो मुंह फेर के जब महफिल में एक धनक टूटकर सीनों में बिखर जाती है I एक इंद्रधनुष जैसे टूटकर बिखर जाता है सीनों में - तुम्हारी मुस्कुराहट से गर्म बोसों से तराशा हुआ नाजुक पैकर जैसे तुम्हारे शरीर को चुंबनों में ही ढाला गया हो और चुंबनों में ही बनाया गया हो ! 54 गर्म बोसों से तराशा हुआ नाजुक पैकर जिसकी इक आंच से हर रूह पिघल जाती है मैंने सोचा है, तो सब सोचते होंगे शायद प्यास इस तरह भी क्या सांचे में ढल जाती है। क्या कमी है जो करोगी मेरा नजराना कबूल चाहने वाले बहुत, चाह के अफसाने बहुत एक ही रात सही गर्मी-ए-हंगामा-ए-इश्क एक ही रात में जल मरते हैं परवाने बहुत । प्रेमी सोचता है, एक भी रात संग-साथ हो जाए ! एक ही रात सही गर्मी-ए-हंगामा-ए-इश्क प्रेम के हंगामे की गर्मी अगर एक रात के लिए भी मिल जाए, तो भी बहुत | एक ही रात में जल मरते हैं परवाने बहुत फिर भी एक रात में सौ तरह के मोड़ आते हैं काश तुमको कभी तनहाई का अहसास न हो ठीक समझी हो, गया भी तो कहां जाऊंगा याद कर लेना मुझे, कोई भी जब पास न हो। आज की रात बहुत गर्म, बहुत गर्म सही रात अकेले ही गुजारूंगा चला जाऊंगा।
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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