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धम्मपद का पुनर्जन्म में। और तीसरी दशा है—द्वंद्वातीत; दोनों से मुक्त हो जा सकते हैं। वही मोक्ष है।
तुमने पूछा : ‘तृष्णा को दुख ही दुख क्यों कहा जाता है?'
क्योंकि तृष्णा दुख ही दुख है। तृष्णा तुम्हें भिखारी बनाती है। जितनी तृष्णा, उतना भिखमंगापन। .
तुम परीशान न हो, बाबे-करम वा न करो
और कुछ देर पुकारूंगा, चला जाऊंगा। एक तो इतनी हंसी दूसरे ये आराइश जो नजर पड़ती है, चेहरे पे ठहर जाती है मुस्कुरा देती हो मुंह फेर के जब महफिल में एक धनक टूटकर सीनों में बिखर जाती है। गर्म बोसों से तराशा हुआ नाजुक पैकर जिसकी इक आंच से हर रूह पिघल जाती है मैंने सोचा है, तो सब सोचते होंगे शायद प्यास इस तरह भी क्या सांचे में ढल जाती है। क्या कमी है जो करोगी मेरा नजराना कबूल चाहने वाले बहुत, चाह के अफसाने बहुत एक ही रात सही गर्मी-ए-हंगामा-ए-इश्क एक ही रात में जल मरते हैं परवाने बहुत। फिर भी इक रात में सौ तरह के मोड़ आते हैं काश तुमको कभी तनहाई का अहसास न हो ठीक समझी हो, गया भी तो कहां जाऊंगा याद कर लेना मुझे कोई भी जब पास न हो। आज की रात बहुत गर्म, बहुत गर्म सही रात अकेले ही गुजारूंगा चला जाऊंगा। तुम परीशान न हो, बाबे-करम वा न करो
और कुछ देर पुकारूंगा, चला जाऊंगा। वासना के द्वार पर लोग खड़े भीख ही मांगते रहते हैं :
और कुछ देर पुकारूंगा, चला जाऊंगा। वे दरवाजे न कभी खुले हैं, न खुलते हैं। तुम्हारे कहने की भी कोई जरूरत नहीं।
तुम परीशान न हो, बाबे-करम वा न करो यह प्रेमी कह रहा है प्रेयसी से कि तुम परेशान मत होओ। दरवाजा खोलो भी मत। यह मन को समझाना भर है। दरवाजा खुलता कब है? दरवाजा किसके लिए खुला? वासना के द्वार से कौन तृप्त हुआ है ?
दरवाजा बंद है। सदा से बंद है। सदा बंद ही रहेगा। दरवाजा खुलना जानता ही
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