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________________ धम्मपद का पुनर्जन्म गया था, लगाव हो गया था। जानती ज्यादा नहीं थी। मुर्गी कितना जाने! लेकिन बुद्ध की हवा एक चुंबक की तरह इसे खींचती रही, खींचती रही। ऐसे अनजाने इसने ध्यान का धन कमाया। ऐसे अनजाने, आकस्मिक रूप से इसने पुण्य अर्जन किया। उस पुण्य अर्जन के कारण यह राजकुमारी होकर पैदा हुई। फिर जब राजकुमारी थी, तो पाखाने में एक दिन इसने कीड़ों को सरकते देखा। उनको, कीड़ों को देखकर इसे स्मरण आया-एक गहन स्मरण आया—कि यही तो हमारी भी दशा है। जैसे कीड़े सरक रहे हैं मल-मूत्र में, ऐसे ही तो हम संसार में सरक रहे हैं। ___ इस संसार में सरकना मल-मूत्र में सरकने जैसा ही है। नौ महीने बच्चा मां के पेट में रहता; मल-मूत्र का ही कीड़ा होता है। मल-मूत्र में ही सरकता है। फिर पैदा हो जाने के बाद भी चाहे तुम मल-मूत्र में मत सरको, लेकिन मल-मूत्र तुम में सरकता है। और तुम करते ही क्या हो? एक तरफ से डाला, दूसरी तरफ से निकाला! और तुम्हारी वासनाएं क्या हैं, आकांक्षाएं क्या हैं? मल-मूत्र में सरकने की ही हैं। तुम्हारी कामवासना का आकर्षण क्या है? मल-मूत्र का ही आकर्षण है। यह सब उसे दिखायी पड़ गया। एक क्षण में जैसे किसी ने छाती में भाला भोंक दिया। उन कीड़ों को सरकते देखकर वह ध्यान को उपलब्ध हुई। मरी तो स्वर्ग में देवी की तरह पैदा हुई। खूब संचित हो गया पुण्य। स्वर्ग तक उड़ी पुण्य के पंखों पर। _ और बुद्ध ने कहा : इसलिए मैं हंसा कि फिर जब स्वर्ग से पुण्य समाप्त हो गए, तो अब यह सुअर की बच्ची होकर पैदा हई; सुअरी होकर पैदा हुई। इसलिए मैं हंसा कि कैसा जाल है! मुर्गी थी; वहां से स्वर्ग तक उठ गयी। फिर स्वर्ग से गिरकर सुअरी हो गयी। क्यों? क्योंकि स्वर्ग में इतना सुख था कि ध्यान इत्यादि भूल गयी। स्वर्ग में इतना सुख था, कौन फिकर करता है ध्यान की, धर्म की? । इसलिए तुम्हारे देवता सब से ज्यादा भ्रष्ट होते हैं। तुम्हारी कथाएं हैं शास्त्रों में; तुम देवताओं से ज्यादा भ्रष्ट लोग न पाओगे! देवता का मतलब है : जो सुख ही सुख में जीता है; जहां दुख है ही नहीं। दुख न होने से दंश नहीं है। दंश न होने से निखार नहीं होता। निखार नहीं होने से देवता करें क्या? एक-दूसरे की स्त्रियों को भगाएं! और करें क्या? आखिर कोई काम भी चाहिए न! स्वर्ग में करोगे क्या? बैठे-ठाले क्या करोगे? उर्वशियों को नचाओ; बैंड-बाजे बजाओ; या कोई ऋषि-मुनि अगर देवता बनने की स्थिति में आ रहा है, तो उनको डिगाओ! करोगे क्या? तो बड़ी राजनीति है स्वर्ग में। कोई बेचारा गरीब ऋषि किसी जंगल में बैठकर उपवास करके ध्यान कर रहा है। उधर इंद्र का आसन डोलने लगता है कि यह आदमी ज्यादा अगर उपवास कर ले, और ज्यादा व्रत-नियम कर ले, और ज्यादा पुण्य अर्जन कर ले, और ज्यादा ध्यान कर ले, तो कहीं ऐसा न हो कि मेरी गद्दी पर कब्जा जमाने का हकदार हो जाए! कहीं इतना पुण्य अर्जन न कर ले कि इंद्र हो जाए! तो मुझे हटना पड़े। तो बड़ी राजनीति है। 51
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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