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________________ एस धम्मो सनंतनो ऐसे जीयो समय में कि समय की जलधार तुम्हें छू न पाए। ऐसे चलो समय में कि समय तुम पर रेखाएं न खींच पाए। यही कबीर ने कहा है : ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया । समय कोई रेखा न खींच पाया। समय की धूल न जमी। दर्पण, जैसा था स्वच्छ, वैसा का वैसा रख दिया। ध्यान उसी महत्वपूर्ण कला का नाम है। समय में जी भी लेता है आदमी और समय छूता भी नहीं। वहीं आनंद है, वहीं मुक्ति है। चौथा प्रश्न : धर्म यदि शुद्ध नियम है, महानियम है, तो तृष्णा भी नियमानुकूल है; वह मनुष्य की कृति नहीं है। और नियमानुकूल होकर तृष्णा का भी उपयोग होना चाहिए। फिर उसे दुख ही दुख क्यों कहा जाता है ? क्यों कि वह दुख है। दुख भी नियमानुकूल है। और दुख का उपयोग है। और दुख का उपयोग करना है। बुद्ध ने चार आर्य सत्य कहे हैं। पहला आर्य सत्यः दुख है। दूसरा आर्य सत्यः दुख का कारण है। तीसरा आर्य सत्य: दुख-मुक्ति संभव है। चौथा आर्य सत्यः दुख-मुक्ति के उपाय हैं । दुख का उपयोग है। दुख के बिना, दुख को जाने बिना, दुख से गुजरे बिना कोई निखरता नहीं। दुख निखारता है, मांजता है। दुख ऐसे है, जैसे सोने को अग्नि में डालो; ऐसा आदमी दुख में पड़कर शुद्ध होता है । लेकिन सोने को अग्नि में डालो, इसका यह अर्थ नहीं कि फिर सोना अग्नि में ही रहे । शुद्ध हो गया, फिर निकालो। दुख में जाने का उपयोग है; दुख के बाहर आने का उपयोग है। दुख व्यर्थ नहीं है, यह बात तो सच है। दुख व्यर्थ होता, तो संसार की कोई जरूरत न थी । दुख व्यर्थ होता, तो दुख की भी कोई जरूरत न थी । दुख का सृजनात्मक उपयोग है। क्या दुख का उपयोग है? दुख तुम्हें जगाता है। कल की कहानी तुमने समझी ! बुद्ध ठिठककर खड़े हो गए हैं एक सुअरी को देखकर। कुछ सोचे। फिर हंसे। आनंद ने पूछा : क्या हुआ ! क्यों ठिठके सुअरी को देखकर ? क्यों सोचे ? क्या सोचे ? फिर हंसे क्यों ? 50 तो बुद्ध ने कहा : यह सुअरी, अतीत में ककुसंध नाम के बुद्ध हुए, उस समय मुर्गी थी। उनके आसपास घूमती थी । वे बोलते, तो यह सुनने जाती थी। वे ध्यान को बैठते, तो यह भी पास ध्यान लगाकर बैठ जाती थी । इसका ककुसंध से प्रेम हो
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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