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________________ धम्मपद का पुनर्जन्म बढ़ गया है। ऐसे ही शास्त्र हैं, उन्हें बार-बार तराशना होता है। उनमें कचरा-कूड़ा इकट्ठा हो जाता है, उसे अलग कर देना होता है। समय धूल जमा जाता है; धूल झाड़नी होती है। फिर ढाई हजार साल में मनुष्य ने जो परिष्कार किया है, वह परिष्कार शास्त्रों में भी होना चाहिए। नहीं तो शास्त्र पीछे पड़ जाते हैं। यही तो कारण है, लोगों की शास्त्रों में श्रद्धा उठ गयी। क्योंकि कोई इतनी हिम्मत नहीं करता कि शास्त्रों को तराशे। शास्त्र सब बचकाने मालूम पड़ने लगे हैं। शास्त्र सब थोथी कहानियां मालूम होने लगे हैं। कारण? कारण इतना ही है कि ढाई हजार साल या पांच हजार साल पहले जो किताब लिखी गयी थी, वह आज के आदमी से बहुत दूर पड़ गयी है; उससे कोई संबंध नहीं रहा। उसमें और आदमी के बीच कोई सेतु नहीं रहा। अब दो ही उपाय हैं : या तो आदमी को पांच हजार साल पीछे ले चलो, तब वह उस शास्त्र को समझे। या शास्त्र को पांच हजार साल आगे लाओ, तो आदमी शास्त्र को समझे। आदमी को तो पीछे ले जाया नहीं जा सकता। ले जाने की जरूरत भी नहीं है। ले जाना हितकर भी नहीं होगा। __ पहले तो जा ही नहीं सकता कोई पीछे। अब जो बच्चा जवान हो गया, उसको बच्चा कैसे बनाओगे? और जब तक वह बच्चा न हो जाए वापस, तब तक खिलौनों से खेलेगा नहीं। वे जो खिलौने बड़े सार्थक थे, वे बचपन में सार्थक थे; अब व्यर्थ हो गए। अगर उन खिलौनों में प्राण डाले जा सकें, अगर उन खिलौनों को फिर सार्थक अर्थ दिया जा सके कि जवान व्यक्ति को भी उनमें अर्थ दिखायी पड़ने लगे, तो फिर मूल्यवान हो जाएंगे। __तो या तो जवान को बच्चा बनाओ, और या फिर बच्चे के खिलौनों को तराशो; नयी जिंदगी दो; नया अर्थ दो नयी कलमें लगाओ; नए फूल खिलने दो। __ आदमी को तो पीछे ले जाया नहीं जा सकता। वही तुम्हारे तथाकथित धर्मगुरु कर रहे हैं। वे चाहते हैं : तुम पीछे चलो। इसलिए धर्म को मानने वाले अक्सर बुद्धिहीन लोग मिलेंगे, जिनके पास बुद्धि ढाई हजार साल पुरानी है। आज की दुनिया में वे बुद्धिहीन हैं। धर्म को मानने वाला थोड़ा मूढ़ मालूम पड़ता है, उसका कारण है। क्योंकि वह जो ढाई हजार साल पुराना शास्त्र है, मूढ़ को ही समझ में आ सकता है; समझदार.को समझ में नहीं आ सकता। बुद्धिहीनता अनिवार्य है, तो ही तुम रामायण और गीता और वेद को पकड़कर बैठ सकते हो। नहीं तो नहीं बैठ सकते। विचारशील आदमी हमेशा धर्म विरोधी हो जाता है, नास्तिक हो जाता है! क्या कारण होगा? यह तो बात उलटी हो गयी। विचारशील आदमी को आस्तिक होना चाहिए; विचारहीन को नास्तिक होना चाहिए। मगर होता उलटा है। विचारशील आदमी नास्तिक हो जाता है; और विचारहीन, जड़-बुद्धि, मंद-बुद्धि आस्तिक हो
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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