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तृष्णा की जड़
निकलेगी। इसलिए करुणा से, दया से, गीली आंखों से इस राजा की तरफ देखा। इतनी बात सुनकर भी यह नहीं समझ पा रहा है! यह अभी भी उसी में उलझा है कि यह बात सच है कि झूठ है। इसका कोई मूल्य नहीं है। राज की बात साफ हो गयी कि बुद्धों के पास आओ, तो पूरे-पूरे आना, समग्र मन से आना। इतना ही राज है। यह भी समग्र मन से यहां नहीं है। यह कहता है: आपकी बात पर मुझे भरोसा नहीं आता। मछली से कहलवाएं, तो मान लूंगा!
बुद्ध को दया आ रही है कि यह भी मछली के रास्ते पर चला; यह भी गिरेगा। यह भी स्वर्ण की देह पा लेगा और दुर्गंध से भरी आत्मा होगी। फिर कहानी दोहरेगी।
ऐसा ही आदमी मूढ़ है। फिर-फिर वही दोहरता। फिर-फिर वही चूक। फिर-फिर उसी गड्ढे में हम गिर जाते हैं। ___और फिर भगवान मछली से बोले : याद कर! भूले को याद कर! तू ही कपिल है? मछली बोली : हां भंते! मैं ही कपिल हूं।
अब तुम इस झंझट में मत पड़ना कि मछलियां कहीं बोलती हैं! अब तुम इस विचार में मत पड़ जाना कि यह बात कपोल-कल्पित है। अभी तक कहानी ठीक चल रही थी। मगर अब सब खराब हुआ। अब भरोसा नहीं आता।
ये कथाएं मनोवैज्ञानिक संकेत हैं। ये बोध-कथाएं हैं। ऐसा कभी हुआ, इस चिंता में पड़ने का कोई भी सार नहीं है। ये तो प्रतीक हैं। इनके पीछे सार है। उसे पकड़ लेना। जैसे छोटे बच्चों के लिए कहानियां कहनी होती हैं। __ईसप की कहानियां पढ़ीं तुमने? या पंचतंत्र की कहानियां पढ़ीं? जानवर बोलते हैं। खूब बोलते हैं। ईसप में जानवर बोलते हैं। पंचतंत्र में जानवर बोलते हैं। छोटे बच्चों की कहानियां हैं। छोटे बच्चों के लिए लिखी गयी हैं। लेकिन कहानी का मुद्दा कुछ और है। कहानी का मुद्दा नीचे जाकर प्रगट होता है। वह मुद्दा समझ में आ जाए, तो कहानी समझ में आ गयी। __ तुम भी बुद्धों के लिए छोटे बच्चों से ज्यादा नहीं हो। ये सारी कथाएं तुम्हारे लिए गढ़ी गयी हैं, ताकि तुम समझ लो। ये कहने के ढंग हैं, ये किसी सत्यं को प्रतिपादित करने के उपाय हैं। ये बोध-प्रसंग हैं। ये इतिहास नहीं हैं। ध्यान रखना। इनको इतिहास समझा, तो भूल हो जाएगी। तुम इनके मूल तत्व से वंचित रह जाओगे। ये संकेत हैं-कथा के रूप में, कहानी के रूप में, एक घटना के रूप में। बुद्ध ने जो कहना था, वह कह दिया। अगर बिना कथा के कहते, तो शायद तुम्हें समझ में भी न आता। इस तरह बात जल्दी से समझ में आ जाती है।
हां, भंते! मछली ने कहा, मैं ही कपिल हूं। और उसकी आंखें आंसुओं से भर गयीं। गहन पश्चात्ताप; आंसू टपके होंगे उसकी आंखों से। और उस अपूर्व क्षण में, इतना बोलकर, वह मर गयी। उसका मुंह खुला था। लेकिन दुर्गंध नहीं उठ रही थी। और जैसे ही पुरानी दुर्गंध
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