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________________ मंजिल है स्वयं में देना चाहते थे। बद्ध चाहते थे कि तुम जागो। तुम अपने को बदलो। तुम किसी का सहारा मत खोजो। वहां कौन है सहारा देने वाला! तुम्हारी बनायी हुई मूर्तियों को प्रतिष्ठित कर लिया है। तुम्हीं ने बनायीं, तुम्हीं ने रख लीं, तुम्हीं उनके सामने झुके हो। खूब खेल चल रहा है! आदमी की धोखे की भी कोई सीमा नहीं है! बुद्ध ने कहा: कोई परमात्मा नहीं है। इसका मतलब यह नहीं कि परमात्मा नहीं है। इसका इतना ही अर्थ है कि अगर परमात्मा है, तो तुम्हारे चैतन्य में छिपा है। वह तुम्हारे चैतन्य की सुवास है। अपने चैतन्य को निखारो और परमात्मा प्रगट होगा। प्रार्थना से नहीं, ध्यान से प्रगट होगा। प्रार्थना में दूसरा है। ध्यान में कोई दूसरा नहीं है, तुम अपने भीतर उतरते हो। अपने को निखारते, साफ करते, पोंछते। धीरे-धीरे जब विचार झड़ जाते हैं, वासनाएं गिर जाती हैं, तब तुम्हारे भीतर वह ज्योतिर्मय, वह चिन्मय प्रगट होता है। तुम्हारे इस मृण्मय रूप में चिन्मय छिपा है-यह बुद्ध ने कहा। प्रार्थना से नहीं होगा. ध्यान से होगा। लेकिन, जैसा मैंने तुमसे पहले कहा, सुनता कौन है बुद्ध की! लोग बुद्ध की ही प्रार्थना करने लगे! लोगों ने बुद्ध के ही मंदिर बना लिए। और लोगों ने कहाः चलो, कोई परमात्मा नहीं है, चलेगा। आप ही परमात्मा हैं। हम आपके ही चरणों में झुकते हैं। आपकी ही प्रार्थना करेंगे! बुद्ध ने घोषणा की थी, परमात्मा नहीं है, ताकि तुम समझ जाओ कि तुम भी परमात्मा हो। नीत्शे का एक बहुत प्रसिद्ध वचन है कि जब तक ईश्वर है, तब तक आदमी स्वतंत्र न हो सकेगा। इसलिए नीत्शे ने कहा : ईश्वर मर गया है। इससे आदमी स्वतंत्र हुआ, ऐसा नहीं लगता है। सिर्फ विक्षिप्त हुआ है। नीत्शे खुद पागल होकर मरा। . बुद्ध ने भी यही कहा कि कोई ईश्वर नहीं है। क्योंकि बुद्ध भी समझते हैं कि जब तक ईश्वर है, तुम स्वतंत्र न हो सकोगे। लेकिन बुद्ध पागल नहीं हुए; स्वयं परमात्मा हो गए। कैसे यह क्रांति घटी! ___ बुद्ध ने कहा: कोई ईश्वर नहीं है, क्योंकि तुम ईश्वर हो। प्रार्थना किसकी करते हो? जिसकी प्रार्थना करते हो, वह तुम्हारे भीतर बैठा है। बुद्ध ने तुम्हें महिमा दी। बुद्ध ने मनुष्य को परम महिमा दी। बुद्ध की धारणा को चंडीदास ने अपने एक वचन में प्रगट किया है : साबार ऊपर मानुष सत्य, ताहार ऊपर नाहीं। सबसे ऊपर मनुष्य का सत्य है और उसके ऊपर और कोई सत्य नहीं है। बुद्ध मनुष्य-जाति के सबसे बड़े मुक्तिदाता थे। सबसे मुक्ति दिला दी। लेकिन आदमी गुलाम है; आदमी मुक्ति चाहता नहीं। तुम उसे किसी तरह 345
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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