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________________ एस धम्मो सनंतनो नारियल बिकते हैं, जो हजार दफे चढ़ चुके हैं और फिर लौट आते हैं। इधर तुम चढ़ाकर आए कि पुजारी उन्हें दुकानों पर बेच जाता है सुबह आकर। फिर चढ़ जाते हैं; फिर चढ़ जाते हैं! हनुमानजी भी थक गए होंगे उन्हीं नारियलों से। एक नारियल चढ़ाकर तुम मुकदमा जीतना चाहते हो! पत्नी की बीमारी दूर करना चाहते हो! चुनाव जीतना चाहते हो! आम आदमी की तो बात छोड़ो; तुम्हारे जो तथाकथित नेता हैं, उनकी भी मंदबुद्धिता की कोई सीमा नहीं है! वे भी चुनाव लड़ते हैं, तो हनुमानजी के मंदिर के सहारे लड़ते हैं। कोई ज्योतिषी...। हर आदमी के ज्योतिषी हैं दिल्ली में। हर नेता का ज्योतिषी है। वह पहले ज्योतिषी को पूछता है कि जीतेंगे, कि नहीं! फिर किसी गुरु का आशीर्वाद लेने जाता है। मेरे पास तक लोग आ जाते हैं! कि आशीर्वाद दीजिए। ___ एक राजनेता आए। मैंने उनसे पूछा : पहले यह बताओ कि किसलिए? क्योंकि राजनेताओं से मैं डरता हूं। डरता इसलिए हूं कि तुम्हारे इरादे कुछ खराब हों! पहले यह तो पक्का हो जाए कि तुम किसलिए आशीर्वाद चाहते हो। उन्होंने कहा : अब आपको तो सब पता ही है! चुनाव में खड़ा हो रहा हूं। . मैंने कहाः अगर मैं आशीर्वाद दूं, तो यही दूंगा कि तुम हार जाओ। इसमें तुम्हारा भी हित होगा और देश का भी हित होगा। वे तो बहुत घबड़ा गए कि आप क्या कह रहे हैं! ऐसा वचन न बोलिए! संत पुरुषों को ऐसा वचन नहीं बोलना चाहिए। मैंने कहाः और कौन बोलेगा! उन्होंने कहा : मैं तो जहां जाता हूं, सभी जगह आशीर्वाद पाता हूं। __ मैंने कहा : तुम्हें जो आशीर्वाद देते होंगे, वे तुम जैसे ही लोग होंगे। तुम्हें उनसे आशा है कि कुछ मिल जाएगा; उनको तुमसे आशा है कि उनको तुमसे कुछ मिल जाएगा। वे तुमको ही आशीर्वाद नहीं दिए हैं। तुम्हारे विपरीत जो खड़ा है, उसको भी आशीर्वाद दिए हैं। कोई भी जीत जाए। ___ तुम भगवान को रिश्वत देते रहे हो। तुम्हारी प्रार्थना एक तरह की रिश्वत और खुशामद है कि मैं पतित और तुम पतितपावन। तुम अपने को छोटा करके दिखाते हो; हालांकि तुम जानते हो कि यह मामला ठीक नहीं है। हम और छोटे? मगर कहना पड़ता है। शिष्टाचारवश भगवान के सामने तुम कहते हो कि तुम महान, मैं क्षुद्र। हालांकि तुम जानते हो कि महान असली में कौन है! ____ मगर आदमी को तो जरूरत पड़ जाए, तो गधे से बाप कहना पड़ता है। तो यह तो परमात्मा है; अब इनसे तो जरूरत पड़ी है, तो कहना ही पड़ेगा। हालांकि बगल की नजर से तुम देखते रहते हो कि अगर नहीं हो पाया, तो.समझ लेना। अगर मेरी बात पूरी न हुई, तो फिर कभी प्रार्थना न करूंगा। बुद्ध ने कहाः न कोई परमात्मा है... । बुद्ध तुम्हारी रिश्वत की धारणा को तोड़ 344
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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