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________________ एस धम्मो सनंतनो दूसरा उपाय काम में आ जाए। फिर गले रस्सी बांधकर, शरीर पर मिट्टी का तेल उंडेल लिया। फिर आग लगायी और झूल गया पहाड़ी से — कि अगर किसी तरह गिर भी जाए, तो गहरी नदी है, उसमें मर जाएगा । और पिस्तौल भी हाथ में रखे है । पिस्तौल चलायी, सिर में मारी — झूलते हुए। मगर सब चूक हो गयी। पिस्तौल लगी रस्सी में, जो बांधी थी । सो धड़ाम से पानी में गिर गया। पानी में गिर गया तो आग बुझ गयी । और जब शाम को घर लौटकर आया, तो लोगों ने पूछा कि मामला क्या है? उसने कहा: सब गड़बड़ हो गया। अगर तैरना न आता होता, तो आज मर ही गए होते। तुम इन झंझटों में न पड़ो । सुगम उपाय आत्महत्या का मैं तुम्हें बताता हूं: संन्यास तुम ले लो। कम से कम अपनी जीवन-चर्या को तो नया ढंग दो। तुम कहते हो, 'जीवन निरर्थक मालूम होता है।' निरर्थक है; मालूम नहीं होता । जिसे तुम जीवन समझते रहे हो, वह निरर्थक है। मगर एक और जीवन है— इस जीवन के पार, इस जीवन से गहरा, इस जीवन से भिन्न - एक और आयाम है होने का । यह जीवन व्यर्थ है; सच ही व्यर्थ है। यही तो बुद्ध को भी दिखा। लेकिन उन्होंने आत्मघात नहीं किया। ध्यान की तलाश की। अगर यह जीवन व्यर्थ है, तो कोई और जीवन भी होगा। इस पर ही क्यों समाप्त मान लेते हो ! इस जीवन का अर्थ — रोटी-रोजी कमाना; दुकान चलाना; रोज वही ... । सुबह फिर उठे; फिर वही कोल्हू के बैल जैसे चल पड़े। फिर सांझ हो गयी; फिर आकर सो गए ! फिर सुबह चले। वही लड़ाई-झगड़ा ! वही बकवास । वही मतवाद । और धीरे-धीरे किसी को भी लगेगा, जिसमें थोड़ी बुद्धि है उसको लगेगा : यह हो क्या रहा है ? इससे सार क्या है ? ऐसे ही चालीस साल करता रहा; और पच्चीस है ? साल तीस साल करूंगा; फिर मर जाऊंगा। इससे प्रयोजन क्या सिर्फ बुद्धओं को यह विचार नहीं उठता। यह शुभ है कि तुम्हें विचार उठा कि जीवन निरर्थक है। मगर इससे ही यह निर्णय लेना उचित नहीं है कि आत्मघात कर लें। पहले और भी तो तलाश कर लो। और ढंग का जीवन भी हो सकता है। मैं तुमसे कहता हूं, और ढंग का जीवन है। मैं तुमसे जानकर कह रहा हूं कि और ढंग का जीवन है। एक जीवन है, जो बाहर की तरफ है; वह व्यर्थ है । और एक जीवन है, जो भीतर की तरफ है; वह सार्थक है । प्रत्येक व्यक्ति अर्थ खोज रहा है। लेकिन गलत दिशा में खोज रहा है, इसलिए नहीं मिलता। अब तुम ऐसा ही समझो कि एक आदमी रेत से तेल निकालने की कोशिश कर रहा है, और नहीं मिलता है । और कहता है : मैं आत्मघात कर लूंगा ! क्योंकि रेत में तेल नहीं है। अब इसमें रेत का क्या कसूर है ? तेल निकालना हो, तो तिल से 340
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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