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________________ मंजिल है स्वयं में कल किसी और सज्जन ने एक प्रश्न पूछा था कि आपसे मिलने क्यों नहीं दिया जाता जब हम मिलना चाहते हैं? आपको बंदी क्यों बना लिया गया है? आप अपनी मर्जी से बंदी हैं? कि आपको किसी ने बंदी बना लिया है? उन्होंने पूछा है कि कबीर को तो जब मिलना हो, तब लोग मिल सकते थे! और नानक झाड़ के नीचे बैठे रहते थे! आपसे क्यों नहीं मिलना हो सकता? ख या ल रखनाः मझे किसी ने बंदी नहीं बना लिया है। लेकिन हां. मैं अपने ढंग से जीता हूं और उसमें मैं कोई दखलंदाजी पसंद नहीं करता। मैं बंदी नहीं हूं, तुम्हारी दखलंदाजी पर रोक है। तुम अपनी दखलंदाजी को नहीं देखते। __ वर्षों तक मैं भी वैसे ही रहा। मैं थक गया। आधी रात लोग चले आ रहे हैं! दो बजे रात लोग दस्तक दे रहे हैं कि हमें दर्शन करना है! आधी रात लोग कमरे में आ जाएं कि हमें आपके पैर दबाने हैं! मैं उनसे कह रहा हूं कि मुझे सोने दो। वे कहते, नहीं; हम तो सेवा करेंगे। जो भोजन मुझे नहीं करना है, वह मुझे भोजन करना पड़े। क्योंकि हमने बड़े प्रेम से बनाया है! मुझे करना नहीं है। मगर हमारे भाव भी तो देखिए! • मैं दिल्ली उतरा-आज से कोई पंद्रह साल पहले ग्यारह बजे रात हवाई जहाज पहुंचा। जो सज्जन मुझे लेने आए थे—वहां से कोई सौ मील दूर जाना था, जनवरी की शीत लहर-खुली जीप लेकर आ गए! मैंने पूछा कि आपको कोई बंद गाड़ी नहीं मिली? बैलगाड़ी ले आते; मगर कम से कम बंद तो लाते! उन्होंने कहा ः ऐसा कैसे हो सकता है! जीप नयी आयी है; हमें आपसे उदघाटन करवाना है। कोई और उपाय न देखकर मुझे खुली जीप में रात ग्यारह बजे से सुबह चार बजे तक यात्रा करनी पड़ी। उस दिन से मझे जो सर्दी पकड़ी, वह आज तक नहीं छूटी। उन्होंने उदघाटन करवा लिया जीप का; उनकी भावना पूरी हो गयी। . मैं थक गया इस तरह की मूढ़ताओं से। मुझ पर कोई बंधन नहीं है। मुझ पर कौन बंधन डालेगा! यह मेरा आयोजन है। कि इस तरह की मूढ़ताओं में मेरा कोई भरोसा नहीं है। और मैं नहीं चाहता कि तुम हर कभी मुझसे मिलने के लिए स्वतंत्र रहो। तुम्हारी स्वतंत्रता पर बाधा होगी; मेरी स्वतंत्रता पर कोई बाधा नहीं है। मेरी स्वतंत्रता बनाने के लिए तुम्हारी स्वतंत्रता पर बाधा डालनी पड़ी है। ___ और नहीं तो मैं खाना खाने बैठता; पचास लोग बैठे हैं! सभा चल रही है। लोग उठ-उठकर मुझे खाना खिलाने लगें! जबर्दस्ती मेरे मुंह में भरने लगे। राजस्थान मैं जाता तो... । एक वर्ष आम का मौसम था। वे एक टोकरी भरकर आम ले आए। उनका भाव! और कोई पचास आदमी! आम मेरे मुंह में लगाएं वे। सारे मेरे कपड़े भी सब आम के रस से भर दिए। और मैं उसका एक चूंट भी न ले 333
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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