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________________ मंजिल है स्वयं में कहां? बांसुरी कहां ? सखियां कहां ? रास क्यों नहीं हो रहा है यहां ? ये सिर घुटाए हुए संन्यासी बैठे हैं सब ! रास कब होगा ? यही होता रहा है। बुद्ध को मानने वाले महावीर के पास जाते थे और कहते थे कि आप नग्न ! और बुद्ध तो कपड़ा पहने हुए हैं ! और महावीर के मानने वाले बुद्ध के पास जाते थे और कहते थे : आप कपड़ा पहने हुए हैं! महावीर ने तो सब त्याग कर दिया है। उनका त्याग महान है। नग्न खड़े हैं ! 1 यह मूढ़ता बड़ी पुरानी है । तुम प्रतिमूर्तियां खोज रहे हो ! इस जगत में परमात्मा दो व्यक्ति एक जैसे बनाता ही नहीं । तुमने देखा : अंगूठे की छाप डालते हो । दो अंगूठों की छाप भी एक जैसी नहीं होती। दो आत्माओं के एक जैसे होने की तो बात ही गलत है 1 मैं मेरे जैसा हूं | बुद्ध बुद्ध जैसे थे। कबीर कबीर जैसे थे । तुम गलत धारणाएं लेकर यहां आ गए। तुम्हारी खोपड़ी में कचरा भरा है। उस कचरे से तुम मुझे तौल रहे हो ! तुम पहले से तैयार होकर आए हो कि कैसा होना चाहिए व्यक्ति को — नानक जैसा होना चाहिए; कि बुद्ध जैसा कि कबीर जैसा - किस जैसा होना चाहिए ! तो तुम चूकोगे। तो तुम्हें धक्का लगेगा । तुम्हें धक्का इसी से लग जाएगा कि मैं कुर्सी पर बैठा हूं। तुम्हारे धक्के भी तो बड़े क्षुद्र हैं! तुम्हें धक्का इसी से लग जाएगा — कि अरे ! मैं इस सुंदर मकान में, इस बगीचे में क्यों रहता हूं! ये धक्के तुम्हें सदा लगते रहे हैं, क्योंकि तुम्हारी धारणाओं के कारण लगते हैं। जैन ने कृष्ण को नर्क में डाला है— तुम्हें पता है ! धक्का लगा बहुत जैनों को कि यह कैसा आदमी है ! युद्ध में भी चला ! जैन तीर्थंकर तो कहते रहे कि युद्ध महापाप है और यह आदमी युद्ध में चला। धक्का न लगे तो क्या हो ? युद्ध में ही नहीं चला, अर्जुन तो संन्यासी होना चाहता था । बिलकुल पक्का जैन था अर्जुन | वह कहता थाः मुझे युद्ध नहीं करना है। अपनों को मारना; हत्या करनी; इतना . खून-खराबा करना — नहीं; मैं तो जंगल जाऊंगा। मैं तो संन्यस्त हो जाऊंगा। मैं सब त्याग दूंगा। इसमें क्या रखा है ? इस भले आदमी को कृष्ण ने भ्रष्ट किया ! गीता और क्या है ? अर्जुन को भ्रष्ट करने की चेष्टा; जैनियों की दृष्टि में। इसको भ्रष्ट किया। इसको समझाया कि नहीं; यही कर्तव्य है । कि यही परमात्मा की इच्छा है; यही मर्जी है। तू होने दे। तू बीच में तू कौन है छोड़ने वाला ? तू कौन है मारने वाला ? तू है ही नहीं। मारने वाले ने, जिन्हें मारना है, पहले ही मार दिया है। तू तो निमित्त मात्र है। तो जैन बड़े नाराज हैं। उन्होंने कृष्ण को सातवें नर्क में डाला है। छठवें में भी नहीं, सातवें में डाला है ! और थोड़े-बहुत दिन के लिए नहीं डाला है। जब तक यह सृष्टि चलेगी - यह सृष्टि, यह कल्प - तब तक ! फिर जब दूसरी सृष्टि बनेगी, 331
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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