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________________ एस धम्मो सनंतनो गए थे। जो भीतर ही मौजूद था, उसके लिए बाहर तलाश कर रहे थे। उससे ही कठिनाई हो रही है। तीसरा प्रश्नः पहले मेरी धारणा थी कि आप भी बुद्ध, नानक, कबीर आदि की प्रतिमूर्ति होंगे। लेकिन जब अपनी आंखों से आपको देखा तो मुझे बहुत धक्का लगा। और फिर आपको देख-सुनकर जैसे ही बाहर निकला कि भीड़ के बीच एक विदेशी युवा जोड़े को मनोहारी प्रेम-पाश में बंधे देखकर मैं ठगा-सा रह गया। और सोचाः क्या यह भी धर्म कहा जा सकता है? पूछा है भगवानदास आर्य ने। उनके पीछे जो पूंछ लगी है-आर्य-उसी में से प्रश्न निकला है। ___पहली बात : मैं किसी की प्रतिमूर्ति नहीं हैं। क्योंकि प्रतिमर्ति तो प्रतिलिपि होगा: कार्बन कापी होगा। प्रतिमूर्ति कोई किसी की नहीं है; न होना है किसी को। क्या तुम सोचते हो कि नानक बुद्ध की प्रतिमूर्ति थे? या तुम सोचते हो कि बुद्ध कृष्ण की प्रतिमूर्ति थे? या तुम सोचते हो कि कबीर महावीर की प्रतिमूर्ति थे? तो तुम समझे ही नहीं। अगर तुम कबीर के पास गए होते, तो भी तुम्हें यही अड़चन हुई होती, जो यहां हो गयी। तुम कहते, अरे! हमने तो सोचा था कि कबीर महावीर की प्रतिमूर्ति होंगे! और ये तो कपड़ा पहने बैठे हैं ! कपड़ा पहने ही नहीं बैठे, कपड़ा बुन रहे हैं! जुलाहा! और महावीर तो नग्न खड़े हो गए थे। बुनने की तो बात दूर, पहनते भी नहीं थे कपड़ा। छूते भी नहीं थे कपड़ा। ये कैसे महावीर की प्रतिमूर्ति हो सकते हैं? और रोज कबीर बाजार जाते हैं, बुना हुआ कपड़ा जो है, उसे बेचने। और कबीर की पत्नी भी है! और कबीर का बेटा भी है। और कबीर का परिवार भी है। और बुद्ध तो सब छोड़कर भाग गए थे। __कबीर ने तो जुलाहापन कभी नहीं छोड़ा। बुद्ध तो राजपाट छोड़ दिए थे। कबीर के पास तो छोड़ने को कुछ ज्यादा नहीं था, फिर भी कभी नहीं छोड़ा। तो कबीर को तुम बुद्ध की प्रतिमूर्ति न कह सकोगे। ___ और न ही तुम बुद्ध को कृष्ण की प्रतिमूर्ति कह सकोगे। और मैं जानता हूं कि भगवानदास आर्य वहां भी गए होंगे। इस तरह के लोग सदा से रहे हैं। बुद्ध के पास भी गए होंगे और देखा होगा, अरे! तो कृष्ण की प्रतिमूर्ति नहीं हैं आप! मोर-मुकुट 330
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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