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________________ एस धम्मो सनंतनो इस तरह से जो धर्म निर्मित होते हैं, उनका धर्म के मूलस्रोतों से कोई संबंध नहीं। बिलकुल असंबंधित हैं। बद्ध ने कहा था : मेरी कोई मूर्ति न बनाए। और जितनी मूर्तियां बुद्ध की हैं दुनिया में, किसी और की नहीं। सब से ज्यादा मूर्तियां बुद्ध की बनीं। और अगर बौद्धों से पूछो–क्यों? यह कैसे हुआ? कि बुद्ध कहते रहे, मेरी कोई मूर्ति न बनाओ! तो बौद्ध कहते हैं : जिसने हमें समझाया, इतना महान सिद्धांत समझाया कि इसकी हम कोई मूर्ति न बनाएं, उसकी याद में हमने मूर्तियां बनायी हैं। इतनी महान बात को जो कहने आया था, उसकी याद तो रखनी पड़ेगी! उर्दू में, अरबी में मूर्ति के लिए जो शब्द है, वह बुत है। बुत बुद्ध से बना। बुद्ध की इतनी मूर्तियां बनीं कि बुद्ध शब्द मूर्ति का पर्यायवाची हो गया कुछ भाषाओं में। उन्होंने पहली दफे मूर्ति ही बुद्ध की देखी। तो बुद्ध और मूर्ति एक ही अर्थ के हो गए। इसलिए बुत। ऐसा रोज हुआ है, ऐसा सदा हुआ है, ऐसा आज भी हो रहा है। और आदमी को देखकर लगता नहीं कि कभी इससे भिन्न कुछ होगा। आदमी के अंधेरे में चीजें आकर भटक जाती हैं। आदमी से बोलना ऐसे है, जैसे पागलों से तुम बोलो। तुम कहोगे कुछ; वे अर्थ लेंगे कुछ। परिणाम कुछ और होगा। बुद्ध ने इसके लिए एक उदाहरण दिया है। एक दिन बुद्ध से एक शिष्य ने पूछा कि आप कहते हैं कि मैं कुछ बोलता हूं, तुम कुछ समझते हो-इसके लिए कोई उदाहरण दें। बुद्ध ने कहा : अच्छा, आज ही उदाहरण दूंगा। __ उस रात जब बुद्ध बोले...। तो वे नियम से, हर प्रवचन के बाद, रात में कहते थेः अब जाओ; रात्रि का अपना अंतिम कार्य पूरा करो, और फिर विश्राम में जाओ। भिक्षु तो जानते थे कि अंतिम कार्य क्या है। अंतिम कार्य था अंतिम ध्यान। सोने के पहले अंतिम ध्यान करके फिर निद्रा में चले जाओ, ताकि ध्यान की गूंज नींद में भी सरकती रहे। ताकि धीरे-धीरे छह-आठ घंटे की नींद ध्यान में ही रूपांतरित हो जाए। ___ और यह बड़ा मनोवैज्ञानिक सत्य है कि जब तुम सोते हो, उस समय तुम्हारा जो आखिरी विचार होता है, वह तुम्हारी निद्रा में सरकता रहता है। उसका परिणाम होता है। इसलिए सारी दुनिया के धर्मों ने सोने के पहले प्रभु-स्मरण, प्रार्थना या ध्यान-इस तरह की विधियां दी हैं। वे बड़ी मनोवैज्ञानिक हैं। ___आखिरी क्षण में, जब तुम नींद में पड़े ही जा रहे हो-पड़े ही जा रहे हो-नींद उतरने ही लगी-पर्दा-पर्दा गिरने लगी तुम्हारे ऊपर-अब तुम कुछ होश में, कुछ बेहोश-तब भी तुम प्रार्थना दोहरा रहे हो या ध्यान कर रहे हो, तो धीरे-धीरे यह ध्यान तुम्हारी निद्रा में प्रविष्ट हो जाएगा। और निद्रा तुम्हारे भीतर गहरी से गहरी दशा है। इसलिए तो पतंजलि ने 322
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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