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________________ मंजिल है स्वयं में आदमी बड़ा कानूनी है! तो बुद्ध ने सोचा : उचित यही है कि कह दिया जाए कि जो तुम्हारे पात्र में गिर गया, स्वीकार कर लो। अब चील दुबारा तो कोई गिराएगी नहीं; बार-बार यह सवाल उठेगा नहीं; इसलिए नियम में एक छिद्र छोड़ना ठीक नहीं है। तो बुद्ध ने कहाः स्वीकार कर लो। और इस छोटी सी घटना से सारे बौद्ध मांसाहारी हो गए! ___आदमी बड़ा बेईमान है! फिर तो लोगों ने तरकीबें निकाल लीं-कि बुद्ध ने मांसाहार का विरोध नहीं किया। मांसाहार के अगर विरोधी होते तो उन्होंने उस भिक्षु को कहा होता कि यह मांस छोड़ दो। बुद्ध ने तो मांसाहार स्वीकार कर लिया। तो सारी दुनिया के बौद्ध मांसाहारी हो गए हैं। दुनिया के सबसे बड़े अहिंसक के शिष्य मांसाहारी हो जाएंगे, यह अकल्पनीय मालूम पड़ता है। लेकिन तरकीब आदमी निकाल लेता है। बुद्ध ने कहा है कि कोई किसी पशु को भोजन के लिए न मारे। सोचा भी नहीं होगा कि आदमी कितना होशियार है। बुद्ध का वचन है कि कोई किसी पशु को भोजन के लिए न मारे। उनको पता नहीं था कि इसका मतलब यह भी हो सकता है कि अगर पशु अपने आप मर जाए, तो फिर उसका भोजन किया जा सकता है! मारा नहीं। तो जो पशु अपने आप मर जाएं, उनका बौद्ध भिक्षु भोजन करने लगे। क्योंकि बुद्ध ने कहा है : मारे न कोई भोजन के लिए। मगर अपने से जो मर गया हो...! - फिर अब चीन में, और जापान में, और थाईलैंड में-जहां बौद्धों की बड़ी संख्या है-होटलों में तुम इस तरह की तख्तियां लगी देखोगे कि यहां मारे हुए जानवर का मांस नहीं बिकता; यहां अपने से मरे जानवर का मांस बिकता है। अब अपने से कितने जानवर मर रहे हैं? अब भिक्षु को या बौद्ध को कोई चिंता नहीं है। वह कहता है : हम क्या करें! दुकान पर साफ लिखा है कि यहां तो अपने आप मरे जानवरों का मांस मिलता है। इतने जानवर अपने आप रोज नहीं मरते कि हर होटल में मांस मिल सके, और हर गांव में मांस बिकं सके। लेकिन अब बौद्ध मुल्कों में सब मांस इसी तरह बिकता है। तो बूचड़खाने क्यों हैं वहां? लाखों जानवर रोज काटे जाते हैं। लेकिन बौद्ध कहता है : यह उसका पाप है। अगर दुकानदार ने धोखा दिया है, तो हम क्या करें! जैसे अपने यहां लिखा रहता है कि यहां शुद्ध घी बिकता है। अब इसमें हम क्या करें! अगर दुकानदार ने कुछ मिला दिया, तो अब हमारी तो जिम्मेवारी नहीं है। हमने तो भरोसा कर लिया! ऐसा होशियार है आदमी। अपने को ही नष्ट करने में बड़ा कुशल है। और तरकीबें सदा निकाल लेता है। एक नियम बनाओ, उसमें से दस तरकीबें निकाल लेता है। और जितने ज्यादा नियम बनाओ, उतनी ज्यादा बात उलझती जाती है, सुलझती नहीं। 321
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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