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________________ समाधि के सूत्र : एकांत, मौन, ध्यान का अर्थ है कि अब यह जो मैंने पाना चाहा है, यह पाकर रहूंगा, या मर जाऊंगा। मृत्यु वरण होगी अब मुझे; लेकिन बुद्धत्व के बिना जीवन वरण नहीं होगा। यह संकल्प का अर्थ है। ऐसे संकल्प को लेकर धम्माराम एकांत में जाकर मौन रखते, ध्यान करते। भिक्षुओं के कुछ पूछने पर उत्तर नहीं देते थे। भिक्षुओं को अड़चन हुई—यह भी स्वाभाविक है। पहली तो अड़चन यह हुई कि धम्माराम की आंख से आंसू न गिरा। और जिस दिन से बुद्ध ने कहा कि अब बस, चार महीने और उस दिन से धम्माराम कुछ और ही हो गया। पत्थर की मूर्ति हो गए। हिले नहीं, डुले नहीं। सारी बातों में रस छोड़ दिया। गपशप चलती होगी। भिक्षु जहां दस हजार इकट्ठे हों, गपशप होती होगी। निंदा-प्रशंसा होती होगी। कौन गलत कर रहा है; कौन ठीक कर रहा है; कौन क्या कर रहा है! भिक्षु और करेंगे क्या! सब तरह के विवाद चलते होंगे: कौन श्रेष्ठ? कौन अश्रेष्ठ? कौन ऊपर? कौन नीचे? सब तरह की राजनीति चलती होगी। और भिक्षु करेंगे क्या! __इसीलिए तो धम्माराम विशिष्ट है। अब कई सोचने लगे होंगे कि बुद्ध तो अब जाने ही वाले हैं, अब शायद मैं कब्जा कर लूं संघ पर। मैं मालिक हो जाऊं। अब बुद्ध तो चले। लोग अपने दांव-पेंच बिठाने में लग गए होंगे। बुद्ध के बाद कौन? अब कौन बुद्ध की गद्दी पर बैठेगा? अब कौन शास्ता होगा? राजनीति चलने लगी होगी। कूटनीति चलने लगी होगी। एक-दूसरे को गिराने-उठाने के उपाय चलने लगे होंगे। भिक्षु मत-बल इकट्ठा करने लगे होंगे-कि मेरे पास ज्यादा लोग इकट्ठे हो जाएं; ज्यादा मत मेरे पास हों, तो कल कब्जा मेरा हो जाएगा। बुद्ध तो अब जाते ही हैं, तो अब ठीक है। जो जाता है, उसको रोका तो जा नहीं सकता। रो भी लिए होंगे और फिर इन सब उपद्रवों में भी लग गए होंगे! लेकिन धम्माराम ठीक दिशा पकड़ा। यह बुद्ध के जाने की बात इतना बड़ा घातक प्रहार हो गयी उसके हृदय पर, जैसे छाती में छुरा चुभ गया। अब कोई जीवन नहीं हो सकता। अब तो बुद्ध के रहते ही बुद्धत्व पा लेना है। अब यह अवसर नहीं खोना है। अब चौबीस घंटे सोते-जागते एक ही धुन उसके भीतर बजने लगी; और एक ही स्वर गूंजने लगा। तो एकांत, मौन और ध्यान-समाधि के उपाय हैं। ये तीन चरण हैं। अपने को अकेला जानो। अकेले आए हो, अकेले जाओगे, अकेले हो। संग-साथ सब झूठ है। संग-साथ सब खेल है। संग-साथ सब मान्यता है; मानी हुई बात है। कौन किसका है? न पत्नी, न पति; न भाई, न बहन; न मित्र। कौन किसका है? अकेले आए, अकेले जाओगे, अकेले हो। इस भाव को गहन कर लेने का नाम एकांत है। 311
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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