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समाधि के सूत्र : एकांत, मौन, ध्यान
___ इस मुनि ने काफी लोग खड़े कर लिए। इसकी प्रतिष्ठा बढ़ती गयी। और जैसे-जैसे इसकी प्रतिष्ठा बढ़ती, यह राजधानी की तरफ बढ़ता गया। क्योंकि अंततः तो राजधानी में ही प्रतिष्ठा है। वह दिल्ली पहुंच गया होगा!
राजनेता ही दिल्ली नहीं पहुंच जाते; महात्मा भी वहीं पहुंच जाते हैं। क्योंकि महात्मा के पीछे भी है तो राजनीति ही। __ कोई तीस साल बीत गए थे इसको मुनि हुए। इसके बचपन का एक साथी दिल्ली आया हुआ था। किसी काम से आया होगा, व्यवसाय से। उसने सोचा कि शांतिनाथ के दर्शन कर आऊं। बचपन का साथी। साथ-साथ पढ़े-लिखे। इसे भरोसा नहीं आता था कि वे क्रोधनाथ शांतिनाथ हो गए होंगे। मगर हो ही गए होंगे। इतनी ख्याति सुनता है! तो उनके दर्शन करने गया। __शांतिनाथ अपने सिंहासन पर विराजमान थे। उन्होंने देख तो लिया; पहचान तो लिया इस आदमी को। मगर अब वे इतने ऊंचे हो गए हैं, इस ऊंचाई पर पहुंच गए हैं—इसको पहचानें कैसे! स्वीकार कैसे करें कि हम कभी साथ खेले! इतने नीचे कैसे उतरें? तो उन्होंने आंख फेर ली। पहचान लिया और नहीं पहचाना!
तभी मित्र को लगा...। क्योंकि मित्र को भी दिखायी पड़ गया कि पहचान लिया है, अब आंख बचा रहे हैं। तो उसे लगा कि शायद कुछ बदलाहट हुई नहीं। उसने कहा कि आप मुझे पहचाने नहीं? तो मुनि ने कहाः कैसे पहचानूं! आप कौन? कहां से आए? तो मित्र ने अपना परिचय दिया। परिचय सुन लिया, लेकिन कोई रस नहीं लिया मित्र में। यह भी नहीं स्वीकार किया कि हां, याद आ गयी; कि कभी तुम्हें जानता था; कभी हम साथ खेले। साथ नदियों में तैरे। साथ लड़े-झगड़े। उस क्षुद्रता की बात अब क्या करनी याद? उस साधारणता की बात अब यह असाधारण महापुरुष कैसे याद करे!
मित्र यह सब देखता रहा। चेहरे पर वही क्रोध है। जो नहीं समझते, वे कहतेः तेजस्विता है! है वही क्रोध, नाक पर सवार है। सब तरफ से साफ है। मित्र जानता है बचपन से। ढंग में कहीं कोई फर्क नहीं हुआ है। वही बात है। सिर्फ रूप बदला है।
परीक्षा के लिए मित्र ने पूछा कि क्या आप से पूछ सकता हूं आपका नाम क्या है? यह बात ही सुनकर मुनि को बहुत क्रोध आ गया। कहाः अखबार नहीं पढ़ते? रेडियो नहीं सुनते? टेलीविजन नहीं देखते? नाम पूछते हो! तुम्हें मेरा नाम पता नहीं है? मेरा नाम शांतिनाथ है। __ मित्र कुछ और थोड़ी बात करता रहा, फिर बोला कि क्षमा करिए। मैं भूल गया। आपका नाम क्या है?
अब तो मुनि को बहुत क्रोध आ गया। क्रोध तो इस आदमी को देखकर ही आना शुरू हो गया था। क्योंकि इसका आना ही...सब स्मृतियां उठने लगी थीं। पुराने दिन जाहिर होने लगे, साफ होने लगे। दबाकर बैठे थे—वह उभरने लगा। क्रोध तो इस
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