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________________ भीतर डूबो बहुत दुखी और पीड़ित थे, रो रहे थे। और उसने कहा : चुप हो जाओ। मैं मर जाऊं, उसके बाद रो लेना। यह कोई घड़ी है रोने की! एक शिष्य ने पूछा कि आपकी मौत आ रही है और आप इतने प्रफुल्लित मालूम होते हैं। ऐसा हमने प्रफुल्लित आपको कभी देखा नहीं! सुकरात ने कहाः जीवन तो मैंने जीया और जान लिया। अब एक नयी चीज जानने का मौका मिल रहा है। मौत आ रही है। जीवन के रहस्यों से तो मैं परिचित हुआ, अब मौत भी पर्दा उठाएगी, मौत का भी धूंघट उठेगा। अब मैं नए सत्य में प्रवेश कर रहा हूं। जीवन जाना-माना है; मौत को भी जानने का मौका करीब आ रहा है। क्यों न मैं प्रफुल्लित होऊ! क्यों न मैं आनंदित होऊं! जो आदमी बाहर जहर तैयार कर रहा था, सुकरात उठ-उठकर बाहर जाता, उससे पूछता : भई, बड़ी देर लग रही है! कब तक तैयार करोगे? अब वह जहर तैयार करने वाला जल्लाद, उसको भी दया आने लगी और उसने कहाः तुम आदमी कैसे हो? मैं देर लगा रहा हूं कि तुम थोड़ी देर और जी लो। तुम्हें जल्दी क्या पड़ी है? तुम मुझसे ज्यादा जल्दी में हो! और मैं देर लगा रहा हूं कि तुम जैसा प्यारा आदमी थोड़ी देर और जी ले। थोड़ी देर और श्वास ले ले। तुम बार-बार पूछने क्यों आ रहे हो! सुकरात छोटे बच्चे की तरह है। जैसे छोटा बच्चा पूछता है। हर चीज को पूछता है! पूछता है : मैं मरूंगा? और उससे कहो कि हां! तो वह कहता है : कब मरूंगा? आज? कल? कब होगी यह बात? ___ यह बूढ़ा सुकरात अभी छोटे बच्चे की तरह ताजा है। इसके दर्पण पर भूल जमी ही नहीं। यह बूढ़ा हुआ ही नहीं। शरीर बूढ़ा हो गया है, मगर इसके प्राण युवा हैं। यह मौत को भी जान ही लगा। इसने जीवन को भी जाना, यह मौत को भी जान लेगा। __ और जिसने जीवन और मृत्यु दोनों को जान लिया, उसने परमात्मा को जान लिया। ये दो द्वार हैं परमात्मा के। जीवन में परमात्मा है, मृत्यु में परमात्मा है। जीवन परमात्मा का दिन है, मृत्यु परमात्मा की रात है। जिसने दिन ही दिन जाना और रात न जानी, उसका जानना अधूरा है। रात के अपने मजे हैं। अपना विश्राम है। रात की अपनी शालीनता है। रात की अपनी गहराई, गहनता है। रात का गहन अंधकार जैसी शांति लाता है, वैसा सूरज का प्रकाश नहीं ला सकता। सूरज के प्रकाश में चीजें उथली हो जाती हैं। रात के अंधकार में गहन हो जाती हैं, गहराई पा जाती हैं। _और फिर दिनभर का थका-मांदा आदमी जैसे रात सो जाना चाहता है, ताकि फिर कल सुबह उठ सके, ताकि कल फिर सुबह सूरज का स्वागत कर सके। ऐसा ही जीवन का थका-मांदा आदमी मृत्यु में सो जाना चाहता है। जो ठीक से जीया, वह ठीक से मरेगा। सम्यक जीवन सम्यक मृत्यु को लाता है। 263
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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