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एस धम्मो सनंतनो
चार दिन बाद तुम दुख कहने लगे! जो एक दिन सुख की तरह लगा था, चार दिन के बाद दुख की तरह लग सकता है। जिस स्त्री को तुमने सोचा था कि यह मिल जाए, तो सब मिल गया, फिर कुछ और नहीं चाहिए। उसके मिलते ही तुम सोचने लगते हो कि इससे छुटकारा हो जाए, तो सब मिल गया। और कुछ नहीं चाहिए। हे प्रभु! अब इससे मुझे बचा लो।
यह वही स्त्री है, जिसकी तुमने मांग की थी!
तुम जो सोचते हो आज सुखकर है, वही कभी दुखकर क्यों हो जाता है ? दूसरा पहलू आज नहीं कल उभरेगा। जिसको तुमने सुंदर माना है, उसकी कुरूपता के भी अंग हैं। आज सुंदर चेहरा देखकर तुम उसके संबंध में बड़े आनंदित हो रहे हो। कल उसके कुरूप अंग भी प्रगट होंगे।
और अक्सर ऐसा होता है; जितने सुंदर व्यक्ति, उतने ही कुरूप भीतर दबी हुई वासनाएं, घृणाएं, कुंठाएं, क्रोध, ईर्ष्याएं पड़ी होती हैं। अक्सर ऐसा हो जाता है कि कुरूप व्यक्ति के भीतर एक तरह का सौंदर्य होता है और सुंदर व्यक्ति के भीतर एक तरह की कुरूपता होती है। यह होना ही चाहिए। क्योंकि दोनों एक-दूसरे के हिस्से हैं। सौंदर्य और कुरूपता भी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सफलता-असफलता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। गरीबी-अमीरी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। .
तुमने कभी-कभी खयाल किया कि गरीबी में एक तरह की अमीरी होती है! और तुमने खयाल किया कि अमीरी में एक तरह की गरीबी होती है! यह तुम्हें दिखायी पड़ जाए जीवन का उलझाव, तो बड़ा सुलझाव हो जाएगा।
तुमने देखा गरीब को मस्ती से चलते? उसकी अमीरी देखी? तुमने अमीर को देखा बोझ से दबे हुए, चिंतारत? न ठीक से सो सकता। न ठीक से खा सकता। न ठीक से जी सकता! तुमने उसकी गरीबी देखी? - मैं तुम्हें यह कहना चाहता हूं कि जहां अमीरी है, वहां गरीबी होगी। जहां गरीबी है, वहां अमीरी होगी।
यह अकारण नहीं है कि बुद्ध और महावीर ने राजमहल छोड़ दिया और फकीर हो गए। उनको एक राज समझ में आ गया होगा। उनको गरीब की अमीरी दिखायी पड़ गयी होगी। उनको यह बात दिखायी पड़ गयी होगी कि जितना कम होता है, उतनी निश्चितता होती है। और निश्चितता से बड़ी और क्या अमीरी है! उनको यह दिखायी पड़ गया होगा कि जितना ज्यादा होता है, उतना भय होता है खोने का। जितना ज्यादा होता है, उतनी सुरक्षा खतरे में होती है।
__ अमीर सोए तो कैसे सोए? और गरीब अनिद्रा को कैसे वरण करे? काहे के लिए वरण करे? कोई कारण नहीं है अमीर को सोने का। जागने के सब कारण हैं, तो रात जागता रहता है। हजार चिंताएं खड़ी रहती हैं उसे घेरे।
गरीब को कोई चिंता नहीं है। जो मिला था दिन में, वह खा-पीकर समाप्त हो
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