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भीतर डूबो
आदमी है— द्वंद्वग्रस्त ! टिकट भी खरीदता था और भगवान से प्रार्थना भी करता था कि प्रभु ! जो हुआ, एक दफे बहुत हो गया। अब दुबारा नहीं । अब स्वास्थ्य भी थोड़ा ठीक होता जा रहा है; दुकान भी फिर चलने लगी है; काम भी सब व्यवस्थित हुआ जा रहा है। बच गया। बचा लिया तुमने। अगर एकाध साल और वे रुपए टिक जाते, तो मैं मारा गया था। एक साल में कम से कम बीस साल बूढ़ा हो गया हूं। कभी अब दुबारा मत दिलवाना।
लेकिन आदमी ऐसा ही है । एक तरफ कहता, दुबारा मत दिलवाना, और हर महीने टिकट भी खरीद लेता । और यह भी सोचता, अब कोई दुबारा थोड़े ही मिलनी है । इस तरह के संयोग, तो एक बार भी आ जाए, तो बहुत ।
मगर संयोग की बात : एक साल बाद फिर लाटरी मिल गयी। जब दुख आते हैं, तो छप्पर फोड़कर आते हैं। जब भगवान देता है, तो छप्पर फाड़कर देता है न! उसने तो छाती पीट ली। जब फिर कार आकर रुकी वही, और फिर नोटों के बंडल उतरने लगे, उसने कहा : हे प्रभु फिर! अब फिर मुझे उसी झंझट में पड़ना पड़ेगा ?
मगर वह पड़ा उसी झंझट में। उसने फिर चाबी फेंकी कुएं में । दुबारा चाबी निकालने का मौका नहीं आया। क्योंकि दुबारा बचा नहीं; मर ही गया। अगर निकाल लेता दुबारा चाबी, और फिर दुकान खोलता, तो भी लाटरी की टिकट खरीदता । और अब और भी जोर से प्रार्थना करता कि हे प्रभु! अब नहीं !
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आदमी ऐसा द्वंद्वग्रस्त है ! ऐसा अपने में खंड-खंड है।
तुम्हें शुभ हुआ, यह बात समझ में आयी कि न दुख को झेल पाते हो, न सुख यह महत्वपूर्ण है। अधिक लोगों की भ्रांति यही है कि दुख को नहीं झेल पाते।
सुख को नहीं झेल पाते - यह तो बात ही अजीब लगती है। सुख तो हम चाहते हैं। लेकिन सुख को भी नहीं झेला जा सकता, क्योंकि सुख और दुख ऊपर ही ऊपर अलग-अलग दिखायी पड़ते हैं, भीतर बिलकुल एक हैं। साठ-गांठ है । षड्यंत्र है दोनों का ।
सुख और दुख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । और जो आदमी दुख से मुक्त होना चाहता है, और सुख को पकड़ना चाहता है, वह कभी दुख से मुक्त नहीं होगा। क्योंकि सिक्के का एक पहलू बचाओगे, तो दूसरा भी बचेगा। और जो आदमी चाहता है कि मैं दुख से मुक्त हो जाऊं, उसे जान लेना चाहिए, उसे सुख से भी मुक्त हो जाना पड़ेगा। वह पूरा सिक्का ही फेंकना होगा।
सुख और दुख मन की उत्तेजनाओं के नाम हैं। जिस उत्तेजना में तुम्हें प्रीतिकरता लगती है, जिसे तुम पसंद करते हो, उसको सुख कहते हो । और जिस उत्तेजना में तुम्हें अप्रीतिकरता लगती है, उसको तुम दुख कहते हो ।
तुमने कभी खयाल किया — कि जिसको तुमने आज सुख कहा है, उसको ही
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