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एस धम्मो सनंतनो शास्त्र से भी मतलब की बात निकाल ली।
भिखमंगा भी रास्ते पर खड़ा होकर कहता है कि दान से बड़ा धर्म नहीं है। दान दो। और अगर न दो, तो उसकी आंखों में तुम्हारे प्रति घृणा है।
भिखमंगा दान से जी रहा है। तुम्हारे साधु-संत भी दान से जी रहे हैं। तुम्हारे पंडित-पुरोहित भी दान से जी रहे हैं। लेकिन सब चूक गए हैं बात।।
दान का मतलब मांगना नहीं है। दान का मतलब देना है। तुम्हारे पास जो हो। धन न हो, तो फिकर छोड़ो। धन ही तो धन नहीं है; और भी तो धन हैं। प्रेम तो है। इतना निर्धन आदमी तो कोई भी नहीं है कि जिसके हृदय में प्रेम न हो। और प्रेम से बड़ा धन और क्या! ___तुम एक गीत गा सकते हो, तो गीत ही गुनगुना दो। तुम बांसुरी बजा सकते हो, तो बांसुरी ही बजा दो। तुम नाच सकते हो, तो पैर में घूघर बांध लो, नाचो। किसी के कान में तुम्हारे घूघर की आवाज पड़ेगी-दान हुआ। तुम्हें कुछ बोध हुआ है; अपना बोध बांटो। तुम्हें कुछ समझ मिली है; अपनी समझ बांटो। तुम्हारे पास जो है...। और ऐसा कोई भी व्यक्ति जगत में नहीं है, जिसके पास कुछ भी न हो।
तुम राह पर पड़े कांटे तो बीन सकते हो! किसी के राह में पड़े कंकड़ तो हटा सकते हो! किसी के पास बैठकर हंस तो सकते हो। किसी रोते के आंसू तो पोंछ सकते हो।
एक आदमी रास्ते से गुजर रहा है, और एक भिखमंगे ने हाथ फैलाया। उस आदमी ने अपनी जेबें तलाशीं। लेकिन कुछ था नहीं उसके पास। उसने भिखमंगे के हाथ में अपना हाथ रख दिया और कहाः भाई! मुझे क्षमा कर। मेरे पास अभी कुछ भी नहीं। कल जब आऊंगा तो जरूर कुछ लेकर आऊंगा।
उस भिखमंगे की आंखें गीली हो गयीं। उसने कहाः अब लाने की कोई जरूरत नहीं; जो देना था, तुमने दे दिया। तुमने मेरे हाथ में हाथ रखा, तुम पहले आदमी हो। तुमने मुझे भाई कहा; तुम मेरे पहले दाता हो। अब और कुछ की जरूरत नहीं। बस, मेरे पास दो घड़ी बैठ जाओ। यह हाथ मेरे हाथ में रहने दो। यह पहला हाथ है, जो मेरे हाथ में आया। धन देने वाले तो बहुत मिले हैं, प्रेम देने वाला कोई भी नहीं मिला।
और भाई तो मुझे किसी ने कहा ही नहीं। यह शब्द कितना प्यारा है-वह भिखमंगा कहने लगा—इसमें कितना मधुरस है! तुमने मुझे सब दे दिया। कभी यहां से गुजरो, तो मेरे हाथ में हाथ देकर क्षणभर बैठ जाया करें। फिर कभी मुझे भाई कहकर पुकारना।
तुम्हारे पास जो हो। किसी को भाई कहकर तो पुकार सकते हो। इतने कृपण तो मत हो जाओ कि किसी को भाई कहना मुश्किल हो जाए।
ईसाई फकीर हुआ-संत फ्रांसिस। वह वृक्षों को भी कहता था भाई। मछलियों को कहता था बहन। चांद-तारों से दोस्ती करता था। पहाड़ों-नदियों से बात करता था। और तो उसके पास कुछ भी नहीं था; फकीर था। लेकिन इतना तो कर सकता
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