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________________ धर्म का सार-बांटना तो भी धन के संबंध में सोचते हैं। हमारा धन पर ऐसा रुग्ण मोह है! तो जब कोई कहता है-दान, तो तत्क्षण तुम्हें खयाल आता है : मेरे पास क्या है? शायद यह भी खयाल आता हो कि ठीक है, दान होना चाहिए; कोई मुझे दे! मैंने सुना है : एक धनपति गांव में था; कभी किसी को कुछ न दिया था। फिर भी लोग जाते थे, क्योंकि वह सब से बड़ा धनपति था। शायद आज नहीं दिया, कल दे, परसों दे। ___ गांव में कोई गरीबों के लिए भोज का आयोजन हो रहा था। लोगों ने सोचाः इसमें तो दे देगा। अकाल पड़ा था। तो लोग गए। उस धनपति ने उनकी बातें सुनीं। उन्होंने कहा कि दान की बड़ी महिमा है। दान से ही व्यक्ति स्वर्ग जाते हैं; दान सीढ़ी है। उसे उन्होंने प्रसन्न देखा, खुला देखा, तो और दान की प्रशंसा की। आशा बंधी कि शायद आज कुछ देगा! लेकिन आशा जल्दी ही निराशा में परिणत हो गयी। उस आदमी ने कहाः बिलकुल ठीक! उस धनपति ने कहाः आप बिलकुल ठीक कहते हैं। कहाः चलो, मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं। उन्होंने कहा : कहां साथ चलते हैं! कुछ दान दें। उसने कहाः नहीं, मैं भी साथ चलता हूं, ताकि लोगों को दान देने के लिए समझाएंगे। जब दान की इतनी महिमा है, तो मैं यहां बैठा नहीं रहूंगा, मैं भी चलूंगा तुम्हारे साथ। और लोगों को समझाऊंगा कि दान दो। दान देने की बात जो करते हैं, हो सकता है, वे भी सिर्फ दान से बचने के लिए दान देने की बात कर रहे हों। यह धनपति जाने को राजी है! दान के प्रचार के लिए राजी है। यह कहता है : जब ऐसी महत्वपूर्ण बात है, तो मैं भी प्रचार करूंगा। लेकिन देने का भाव नहीं उठता। देने की हमारे भीतर भावना ही पैदा नहीं होती। हमने जन्मों-जन्मों से नहीं दिया है। हमने कुछ भी नहीं दिया है। हम सदा भिखमंगे हैं। हम सदा मांग रहे हैं। जब लोग कहते हैं : प्रेम, तब भी वे प्रेम मांगते हैं, देते नहीं। जो देता है, उसे तो बहुत मिलता है। उसे मांगना नहीं पड़ता। उसे हजार गुना मिलता है। लाख गुना मिलता है। करोड़ गुना मिलता है। लेकिन लोग कहते हैं कि कोई हमें प्रेम नहीं करता! मेरे पास लोग रोज आते हैं, वे कहते हैं : क्या करें? जीवन में प्रेम नहीं मिलता! कैसे प्रेम मिले? शायद ही कोई आकर पूछता हो कि मैं प्रेम देना चाहता हूं, कोई लेने वाला नहीं मिलता। __ अगर तुम प्रेम देना चाहो, तो लेने वाले तो बहुत मिलेंगे, क्योंकि सारे लोग प्रेम के भूखे हैं। और तुम दोगे, तो तुम्हें मिलेगा। दिए बिना किसी को नहीं मिलता। लेकिन लोग मतलब भी अपने निकाल लेते हैं! अब दान की इतनी महिमा शास्त्रों ने कही है, इसका परिणाम यह हुआ कि पंडित-पुरोहितों ने दान का धंधा बना लिया। वे समझाने लगे लोगों को कि दान दो। शास्त्र का उन्होंने शोषण कर लिया। 213
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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