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________________ एस धम्मो सनंतनो होगा? पहले संस्कृत सीखो महाराज ! फिर ब्रह्मज्ञान की चर्चा करना ! यही पंडितों की सदा से धारणा रही है । जैसे ब्रह्मज्ञान के लिए संस्कृत कोई जरूरी है! जैसे जो संस्कृत नहीं जानते, वे ब्रह्मज्ञानी नहीं हो सकते। तो फिर जीसस ब्रह्मज्ञानी नहीं थे? और बुद्ध भी नहीं थे? और महावीर भी नहीं थे! नानक भी नहीं थे! कबीर भी नहीं थे ! लाओत्सू भी नहीं थे ! क्योंकि कोई भी संस्कृत के ज्ञाता नहीं हैं । यह तो मूढ़तापूर्ण बात है। यह वैसे ही मूढ़तापूर्ण है, जैसे कोई कहे : अरबी को बिना कोई परमात्मा को कैसे जानेगा ? तो फिर मोहम्मद ही जान सकते हैं। फिर कृष्ण चूक गए। फिर राम चूक गए। जैसे कोई कहे कि बिना हिब्रू को जाने कोई कैसे परमात्मा को जान सकता है ? तो फिर जीसस के अलावा सब चूक गए। यह बात मूढ़तापूर्ण है। लेकिन सभी को यह अहंकार पकड़ता है। संस्कृत को मानने वाले कहते हैं: संस्कृत देववाणी है। बाकी सब भाषाएं आदमियों की। परमात्मा की भाषा – संस्कृत ! परमात्मा की भाषा मौन है। और कोई भाषा परमात्मा की नहीं है । सब भाषाएं आदमियों की हैं – संस्कृत हो, कि अरबी हो, कि पाली हो, कि प्राकृत हो - सब भाषाएं आदमियों की हैं। भाषा की जरूरत आदमी को है, परमात्मा को भाषा की जरूरत नहीं है। परमात्मा मौन है। मनको उपलब्ध होता है, वही उसको उपलब्ध हो जाता है। फिर तुम फारसी जानकर मौन को उपलब्ध हुए, कि संस्कृत जानकर मौन को उपलब्ध हुए - इससे क्या फर्क पड़ता है ! असली सवाल यह है कि मौन को उपलब्ध हुए । संस्कृत बाहर फेंकी, किं प्राकृत बाहर फेंकी, कि अंग्रेजी बाहर फेंकी, कि जर्मन बाहर फेंकी - इससे क्या फर्क पड़ता है? तुम शून्य हो गए, शांत हो गए - यही बात असली है। रामतीर्थ की आंखों में तो आंसू आ गए यह बात सुनकर कि संस्कृत को जाने बिना कोई ब्रह्मज्ञानी नहीं हो सकता है। यह तो हद्द मूढ़ता की बात हो गयी । लेकिन इस बुद्ध वचन का यही अर्थ बौद्ध पंडित करते रहे हैं। क्योंकि इस वचन बौद्ध पंडितों के अहंकार को बड़ा सहारा मिल गया। वे निरुक्त के जानकार, पद के जानकार, और अक्षरों को पहले पीछे रखना जानते हैं। कौन सा अक्षर कहां रखा जाना चाहिए, उसकी ठीक-ठीक जगह जानते हैं। तो इससे तो उनको एक बात पक्की हो गयी कि पांडित्य के बिना कोई प्रज्ञा को उपलब्ध नहीं होता। हालांकि पंडित शब्द भी प्रज्ञा शब्द से ही बनता है। लेकिन फिर उसके अर्थ विकृत हो गए हैं। पंडित वह, जो शास्त्र का जानकार है। प्रज्ञावान वह, जो सत्य का जानकार है। T 204
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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