SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दर्पण बनो भी नहीं है। आशा का मतलब है: फिर सपने। निराशा का अर्थ है: सब सपने टूट गए, भंग हो गए। आशा का अर्थ है : फिर वासना, फिर कामना। आशा का अर्थ है: आज तक तो नहीं हुआ, कल हो जाए शायद; परसों होगा। आशा का अर्थ है : भविष्य पुनरुज्जीवित हो उठा; योजनाएं बनने लगीं; सपने फिर पंख फैलाने लगे। नहीं; तुम गलत जगह आ गए। यहां तो पंख काटे जाते हैं सपनों के। यहां तो हताशा सिखायी जाती है। यहां तो निराशा परिपूर्ण हो जाए, तो ही कुछ हो सकता है। तुम कहते हो : 'मैं निराशा में डूबा जा रहा हूं।' डूब ही जाओ। अब अपने को बचाने की कोशिश मत करो। वही कोशिश तुम्हारी दुश्मन है। अब डूब ही जाओ। बहुत दिन तो बचाया! बचाकर पाया क्या? अब डूब ही जाओ। ____ आशा बहुत दिन तो रखी। कितनी सम्हाली? हाथ क्या लगा? अब आशा को मरने भी दो। अब और इसको श्वास मत दिए जाओ। अब राम-राम सत्य बोल दो। अब बांधकर इसकी अर्थी और मरघट ले जाओ। कहोः आशा मर गयी। इसको अलविदा कहो। इसको जाने दो। अब निराशा में ठहर जाओ। और तुम चकित होओगे जानकर कि अगर आशा पूरी मर जाए, तो उसी के साथ निराशा भी मर जाती है। यह तुम्हें जरा कठिन होगा; क्योंकि तुम सोचते हो कि आशा मर गयी, तो निराशा ही निराशा रहेगी। तो तुम गलत सोचते हो। तो तुम्हें जीवन का गणित आता नहीं। तो तुम्हें जीवन के तर्क का कुछ पता नहीं है। तो तुम आदमी के तर्क में जी रहे हो। ___ आदमी के तर्क में बड़ी गहराई नहीं है; बड़ा छिछला है। आदमी का तर्क कहता है : आशा गयी, तो निराशा। लेकिन जीवन का गणित कुछ और कहता है। जीवन का गणित कहता है कि जब तक आशा है, तब तक निराशा है। __निराशा का मतलब क्या होता है? तुमने एक आशा की, पूरी न हुई तो निराशा। जब तुमने आशा ही छोड़ दी तो अब तुम निराश कैसे होओगे? निराश तुम्हें करेगा कौन? जब आशा ही गयी, तो उसी के साथ उसकी छाया भी गयी। छाया है निराशा आशा की। तुम्हारे घर में कोई मेहमान आया, जब मेहमान चला गया फिर क्या तुम कहते हो : उसकी छाया रह गयी! मेहमान गया, तो छाया भी गयी। छाया रह नहीं सकती। तो तुम कहते हो : 'मैं निराशा में डूबा जा रहा हूं।' लेकिन अभी भी तुम आशा को पकड़े हो; डूब नहीं रहे हो। कहते हैं न, डूबते को तिनके का सहारा। तुमने कुछ तिनके बना रखे होंगे। तुम सोचते होओगेः चलो, संसार में कुछ नहीं हुआ; धर्म के जगत में कुछ हो जाएगा। चलो, धन नहीं मिला; ध्यान मिलेगा। चलो, यह लोक नहीं, तो परलोक सम्हाल लें। अब यह तो गया। अब वहां सम्हाल लें। पुण्य कमा लें। पद तो नहीं मिला, पुण्य तो मिल जाए। 195
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy