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________________ दर्पण बनो स्वर्ग में भी नरक देख लें, ऐसे लोग हैं। नर्क में भी स्वर्ग देख लें, ऐसे लोग हैं। और जो नर्क में स्वर्ग देख ले, वही है जानकार, समझदार। जो नर्क में भी सुखी हो, उसे तुम नर्क कैसे भेज सकोगे? ___ एक पुरानी तिब्बती कहावत कहती है : सुखी व्यक्ति को नर्क नहीं भेजा जा सकता। तुम सोचते हो कि सुखी व्यक्ति को स्वर्ग भेजा जाता है। तुम गलती में हो। कहीं भी भेजो, सुखी व्यक्ति स्वर्ग में होता है। सुखी व्यक्ति को स्वर्ग भेजना नहीं पड़ता। सुखी व्यक्ति स्वर्ग में होता है। तुम अगर दुख की कला में बहुत निष्णात हो गए हो-और ऐसे लोग निष्णात हो गए हैं, उन्हें कुछ दिखायी ही नहीं पड़ता। कितने ही फूल खिलें, कितने ही तारे आकाश में हों, उन्हें कुछ दिखायी नहीं पड़ता! वे जमीन में अपनी आंखें गड़ाए चलते चले जाते हैं। ___ मैंने सुना है: एक कारागृह में दो कैदी बंद थे। पूर्णिमा की रात और चांद निकला। और दोनों आकर सींकचों को पकड़कर बाहर देखने लगे। एक कैदी बोला, दुष्टों ने किस जगह कारागृह बनाया है! सताने की कितनी तरकीबें निकाली हैं। यहां सींकचों को पकड़कर भी खड़े नहीं हो सकते। देखते, सामने एक डबरा भरा है! गंदगी और मच्छड़! और वह आदमी डबरे में गौर से देखने लगा। और डबरे में क्या दिखायी पड़ाः कोई पुराना जूता पड़ा है। कोई पुराना टीन का कनस्तर पड़ा है। और वह बड़ा नाराज हो गया। और दूसरा आदमी चांद को देख रहा है। और दूसरा आदमी बोला : धन्यभाग! कारागृह तो मैं भूल ही गया कुछ देर के लिए! सींकचे सींकचे न रहे। मैं तो खुले आकाश में उड़ गया। मेरे तो पंख फैल गए। कैसा अपूर्व चांद निकला है! __ वे दोनों एक ही कारागृह में हैं। दोनों एक ही सींकचे को पकड़कर खड़े हैं। एक ने डबरा देखा; एक ने चांद देखा। जिसने जो देखा, वह वैसा हो गया। जिसने चांद देखा, वह आकाश में पंख खोलकर उड़ गया। जिसने डबरा देखा, उसे सड़े-गले जूते, कनस्तर, इत्यादि से सत्संग हो गया। सब दृष्टि की बात है। चांदनी तो पूरे वक्त बरस रही है। _ 'कोई एक किरण को तरस गया, कोई चांदनी में नहा लिया।' दृष्टि की बात है। यह मत सोचना भूलकर कि तुम पर चांदनी नहीं बरस रही है। परमात्मा सब को बराबर उपलब्ध है। मगर तुम पीठ किए खड़े हो! चांदनी बरस रही है; तुम आंख बंद किए खड़े हो! चांदनी बरस रही है; तुमने धूंघट डाल रखा है। चांदनी बरस रही है; तुम घर के भीतर बंद हो। ___ तुम्हें एक किरण भी मिल जाए, तो किसी भूल-चूक के कारण मिल गयी। तुमसे कुछ भूल-चूक हो गयी, इसलिए मिल गयी। तुम्हारे बावजूद मिल गयी, तुम्हें 191
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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