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दर्पण बनो अस्सी - नब्बे - सौ साल की उम्र सामान्य होती जा रही है। सौ के ऊपर लोग हैं। रूस में कोई हजारों लोग हैं, जो सौ के ऊपर पहुंच गए हैं। सब सुविधा है। पर बड़ी अशांति है। अशांति का कारण क्या है? मौलिक कारण है: पश्चिम की गति में आस्था, स्पीड । हर बात में तेजी !
जब तुम बहुत तेजी में होते हो, तो तुम सदा भागे हुए होते हो। भागने में जीवन उद्विग्न हो जाता है। भागने में जीवन विक्षिप्त हो जाता है।
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आहिस्ता चलो। ऐसे चलो, जैसे सुबह घूमने निकले हो, बगीचा घूमने गए हो । कहीं जाना नहीं है। तो ही तुम वृक्षों को देख पाओगे; फूलों को देख पाओगे; पक्षियों की चहचहाहट सुन पाओगे। सुबह का सार - -सौंदर्य तुम्हें अनुभव में आएगा।
लेकिन पश्चिम में लोग घूमने भी जाते हैं, तो भी कार में जाते हैं ! और कार भी जाती है, तो तेज रफ्तार से जाती है। बगीचे तो नहीं पहुंच पाते, कहीं दुर्घटना हो जाती है।
तुम्हें पता है, छुट्टी के दिन जितने लोग दुर्घटनाओं में मरते हैं पश्चिम में, उतने और किसी दिन नहीं मरते ! क्योंकि छुट्टी के दिन सभी घूमने निकल पड़ते हैं ! सब भागे जा रहे हैं। कोई पूछता भी नहीं : कहां ? किसलिए ? जब सारा गांव भाग रहा है, तो तुमने भी अपनी कार निकाली और तुम भी सम्मिलित हो गए। पीछे रह जाना ठीक नहीं है! पीछे रहने में दुख होता है। जहां और जा रहे हैं, वहां हम भी जा रहे हैं।
मैंने एक कहानी सुनी है : एक युवक अपनी प्रेयसी को लेकर कार चला रहा है। उसने कहा कि दूसरे गांव हम जल्दी ही पहुंच जाएंगे। लेकिन वह समय तो कभी का निकल गया । और सौ मील की रफ्तार से जा रहे हैं। उस युवती ने पूछा कि वह गांव तो आता नहीं दिखता ! उसने कहा: तुम फिकर क्या करती हो ? चाल देखो ! कितनी तेज चाल से जा रहे हैं ! अरे ! गांव में क्या? पहुंचे कि नहीं पहुंचे ! इससे क्या फर्क पड़ता है। मगर चाल देखो !
यह हालत ऐसी हो गयी, लक्ष्य ही भूल गया, चाल में ही मजा है। तेज जा रहे हैं । कहां जा रहे हैं - यह मत पूछो। कहां पहुंचोगे — यह मत पूछो ।
और पश्चिम की यह छाया पूरब पर पड़ती जाती है। पूरब में भी तेजी आती जाती है।
मैं तुम्हें कह दूं : कुछ चीजें हैं, जो धीमे-धीमे बढ़ती हैं। मौसमी फूल होते हैं, वे जल्दी बढ़ते हैं। मगर जल्दी मर भी जाते हैं । दो-चार सप्ताह में आ भी जाते हैं, दो-चार सप्ताह में गए भी! उनका निशान भी नहीं रह जाता।
आकाश को छूने वाले दरख्त ऐसे दो-चार सप्ताह में नहीं बढ़ते । आकाश को छूने वाले दरख्तों को समय लगता है। सैकड़ों वर्ष लगते हैं। जो दरख्त सैकड़ों वर्षों तक आकाश से बातें करेंगे, चांद-तारों से गुफ्तगू करेंगे, वे ऐसे ही नहीं बढ़ जाते - कि तुमने सुबह लगाया और रात देखा कि आकाश में पहुंच गए। समय
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