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________________ बोध से मार पर विजय नहीं पहुंच सकते कि समझ लो कि जो मार्ग तुमने पकड़ा, वह ठीक है या गलत है! क्योंकि कभी तुम मार्ग को पूरा ही नहीं कर पाते, तो ठीक-गलत का निर्णय कैसे हो? इसलिए झूठे गुरु भी चल जाते हैं। मिथ्या गुरु भी चल जाते हैं। सदा उनके लिए एक सुविधा है, सुरक्षा है कि मैंने जो कहा, वह तुमने किया नहीं। करने को वे इस तरह की बातें कहते हैं, जो कि अमानवीय हैं। जो कि शायद की नहीं जा सकती। या जिन्हें करने के लिए कोई महा संकल्पवान व्यक्ति चाहिए। ___ बुद्ध वैसे ही व्यक्ति थे। सब दांव पर लगाया था। ऐसे कुनकुने आदमी नहीं थे कि चलो, मिल जाए ईश्वर तो ठीक है! जीवन जाए, तो ठीक, मगर ईश्वर को मिलना! सत्य को मिलना! सब खो जाए, उसके लिए राजी थे। जुआरी थे। क्षत्रिय थे। दांव पर लगाना जानते थे। कोई दुकानदार नहीं थे। कुछ ऐसा थोड़ा-बहुत करने से, घंटी बजाने से, राम-राम जपने से मिल जाएगा-ऐसी उनको आस्था भी नहीं थी। ___ तो जिस गुरु ने जो कहा, बिलकुल मूढ़तापूर्ण बातें कहीं, वे भी उन्होंने की। किसी ने कहा कि रोज-रोज भोजन कम करते जाओ, रोज भोजन कम करते जाओ, जब एक चावल का दाना ही भोजन बचे, तब ज्ञान होगा। ऐसे वे कम करते गए। छह महीने में एक चावल का दाना ही भोजन बचा। ज्ञान तो नहीं हुआ, शरीर नष्ट हो गया! निरंजना नदी को पार करते थे, पार न कर सके। छोटी सी नदी। कोई बड़ी नदी नहीं। थककर गिर गए। एक जड़ को पकड़कर रुके रहे। जड़ को भी पकड़ने की ताकत न थी! तब स्मरण आया कि यह मैं क्या कर रहा हूं! इस तरह शरीर को नष्ट करके, सिर्फ शक्ति खो गयी। नदी पार कर नहीं सकता, भवसागर पार करने का इरादा रख रहा हूं! बुद्ध बहुत गुरुओं के पास गए, लेकिन जहां गए, जो कहा, वही किया। फिर भी कुछ सफल न हुआ। गुरुओं ने उनसे क्षमा मांग ली। उनकी इस घटना को पढ़कर मुझे हमेशा खलिल जिब्रान की एक कहानी याद आती है। __. एक आदमी गांव-गांव घूमता था। वह कहता था जिसको ईश्वर से मिलना हो, मेरे साथ आओ। मुझे पता है। मैं ईश्वर तक पहुंचा दूंगा। कहां पहाड़ों में रहता है, मुझे मालूम है। मगर किसी को पहली तो बात ईश्वर से मिलना ही नहीं। लोग कहते कि जब मिलना होगा, जरूर आपके पास आएंगे। लोग उनको दान भी देते, उनकी पूजा भी करते, उनको भोजन भी करवाते। और कहतेः महाराज! अब आप जाओ। ईश्वर से किसको मिलना है? लोग कहते : अभी जिंदगी में और हजार काम हैं। आखिर में जब मिलने की इच्छा आएगी, जरूर आपके पास आएंगे। ऐसे धंधा चलता था। न कोई मिलना चाहता था, न कोई मिलने की झंझट आती थी। मगर एक गांव में एक आदमी झंझटी मिल गया। उसने कहाः अच्छा गुरुदेव! 161
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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