________________
बोध से मार पर विजय
1
गए। और अरिहंत का अर्थ होता है, जिसने अपने शत्रुओं को मार डाला। जैन परंपरा संकल्प की परंपरा है, संघर्ष की परंपरा है। इसलिए महावीर को महावीर कहा है। नाम उनका वर्धमान था । जैन परंपरा संघर्ष की परंपरा है, इसलिए उसका नाम जैन है। जैन का अर्थ होता है— जिन, जीता हुआ । जीत के लिए संघर्ष है।
बुद्ध की परंपरा में संघर्ष पर जोर नहीं है; तप पर जोर नहीं है; संकल्प पर जोर नहीं है। बुद्ध की साधना में बोध पर जोर है। और बोध जब जगता है, तो शत्रु अपने से हार जाते हैं, तुम्हें हराने नहीं पड़ते ।
जैन परंपरा तपश्चर्या पर जोर रखती है, बुद्ध परंपरा स्मृति पर ।
इसलिए एक अपूर्व बात घटी है। बौद्धों ने जितना ध्यान को विकसित किया दुनिया में, किसी ने भी नहीं किया। ध्यान बुद्ध का सार है।
अर्हत का अर्थ होता हैः जिसके शत्रु गिर गए। बोध जगा और शत्रु गिर गए। जैसे दीया जला और अंधेरा चला गया। ऐसे अर्हत । अरिहंत का अर्थ होता है : शत्रुओं से लड़े; मारा; गिराया; जीता। महावीर का मार्ग संकल्प का; बुद्ध का मार्ग समर्पण का ।
लेकिन समर्पण में भी भेद हैं। बुद्ध का मार्ग ऐसे समर्पण का नहीं, जैसे नारद का या मीरा का । उनके समर्पण का अर्थ है : ईश्वर के प्रति समर्पण | बुद्ध के समर्पण का अर्थ है : संघर्ष नहीं, शांत भाव । अपने भीतर ही विश्राम को उपलब्ध हो जाना । किसी के चरण नहीं गहने हैं। कोई परमात्मा नहीं है, जिसके चरणों में चले जाना है। अपने में ही डूब जाना है। लड़ना नहीं है, अपने बोध में समाहित हो जाना है
1
I
'जिसने अर्हत के पद को पा लिया, वह सदा भयरहित है,' बुद्ध ने कहा, 'जो वीततृष्णा और निष्कलुष है, जिसने संसार के शल्यों को काट दिया, यह उसकी अंतिम देह है । '
मार को उन्होंने कहा : सुन पागल ! यह राहुल की अंतिम देह है । अब तू इसे डरा न सकेगा। यह तो आखिरी घड़ी आ गयी इसकी। इसके बाद इसकी दुबारा देह होने वाली नहीं है । यह फिर नहीं जन्मेगा । अब तू इसे मौत से न डरा सकेगा।
मौत कब तक डरा सकती है? मौत तभी तक डरा सकती है, जब तक जीवन का आकर्षण है। खयाल कर लेना। जब तक तुम चाहते हो : जीवन बना रहे, रहे, सदा बना रहे; जीवेषणा जब तक है, तब तक मौत डरा सकती है।
बना
बुद्ध कहते हैं : इसकी तो जीवेषणा ही चली गयी; यह तो अब दुबारा पैदा होना ही नहीं चाहता; इसके भीतर चाह ही न बची अब बचने की; इसकी भवतृष्णा समाप्त हो गयी है । यह इसकी अंतिम देह है। इस बार इसकी देह गिरेगी, तो दुबारा यह किसी गर्भ में नहीं उतरेगा। यह महाशून्य में प्रवेश करने के लिए तैयार खड़ा है। इसको अब तू डरा न सकेगा। काम से तू डरा नहीं सकता; भय से भी तू डरा नहीं सकता | तेरी चेष्टा व्यर्थ है मार !
159