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बोध से मार पर विजय
बेटा था, तो अदभुत होना चाहिए। बारह साल के बेटे से यह अपेक्षा करनी! लेकिन वह भिक्षु की तरह रहा। चूंकि छोटा था, इसलिए भिक्षुओं का जो प्रथम द्वार है-श्रामणेर, उसकी ही दीक्षा उसे बुद्ध ने दी थी। लेकिन श्रामणेर रहते हुए भी वह छोटा सा बच्चा अर्हत की अवस्था के करीब आ गया था, बुद्ध होने के करीब आने लगा था। ___मार का हमला तभी होता है, जब कोई बुद्ध होने के करीब आने लगता है। उसके पहले हमला नहीं होता। तुम्हारा अगर शैतान से मिलना नहीं हुआ है, तो उसका कारण यह नहीं है कि शैतान नहीं है। उसका केवल इतना ही कारण है कि तुम अभी इस योग्य नहीं कि शैतान तुम पर ध्यान दे। उसके लिए पात्रता चाहिए, योग्यता चाहिए। ___ तुम में शैतान को कुछ रस नहीं है। तुम गड्ढे में वैसे ही पड़े हो। शैतान तुम से जो करवाए, वह तुम अपने आप ही कर रहे हो। शैतान तुम्हें जहां ले जाए, तुम अपनी मर्जी से ही जा रहे हो। अब शैतान और क्या करे! तुम्हारे साथ कोई उपाय नहीं है।
शैतान तो तुम्हारे जीवन में तभी प्रगट होता है, जब तुम्हारे जीवन से बुराई गिरने के आखिरी स्थल पर आ जाती है।
शैतान कोई बाहर नहीं है; शैतान तुम्हारे मन की आखिरी चेष्टा है तुम्हें बंधन में रखने के लिए। शैतान का इतना ही अर्थ है कि तुम्हारा मन अपनी मालकियत तुम पर आसानी से नहीं छोड़ देगा।
लेकिन जब तक तुम खुद ही उसके गुलाम हो, तब तक मालकियत कायम करने की कोई जरूरत भी नहीं है। तुम गुलाम हो ही। जब तुम मालिक होने लगते हो, और मन को यह लगता है कि अब मैं गया; अब मेरी मालकियत गयी; अब यह आदमी होश सम्हालता जा रहा है; जल्दी ही मेरी हुकूमत समाप्त हो जाएगी। इसकी हुकूमत आने के करीब है; तब मन अपनी सारी ताकत को इकट्ठी करके...।
और बड़ी ताकत है मन की, क्योंकि जन्मों-जन्मों से मन मालिक रहा है। उसे तुम्हारी सारी कमजोरियां पता हैं। उसे तुम्हारे सारे भय पता हैं। उसे तुम्हारी सारी वासनाएं पता हैं। वह तुमसे भलीभांति परिचित है। वह जानता है, तुम कहां-कहां कमजोर हो। वह कमजोर स्थल पर उंगली रखकर दबाना जानता है। तुमसे उससे ज्यादा परिचित और कौन है! जन्मों-जन्मों में उसने तुम्हें जाना है।
शायद मार ने इसीलिए हमला किया। इस घटना में कुछ अतिथि आ गए हैं, उनको ठहराने की जगह चाहिए, तो राहुल का कमरा उनको दे दिया गया है। रात राहुल सोने के लिए जगह नहीं पाया। कोई और उपाय न देखकर, जहां बुद्ध ठहरे थे, उस गंधकुटी में...।
बुद्ध जहां ठहरते थे, उस कुटी का नाम गंधकुटी होता था। क्योंकि बुद्ध में एक गंध है परलोक की। जहां ठहरते थे, उसका नाम गंधकुटी रखा जाता था। वहां
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