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बुद्धत्व का कमल
यह विरोध का भय भी अहंकार का ही भय है।
और तुम कहते हो कि 'मेरी सामर्थ्य अति अल्प है।' सभी की है। जितनी है, उसका उपयोग करो, तो बढ़ेगी। इस गीत पर ध्यान करना।
दीपक गानः अगर आंधियां चल रहीं तो चलें किसी ने संजोया मुझे प्यार से मदिर प्यार से, आज मनुहार से संवारा मुझे जीत और हार से किसी की अलस-आस का दीप मैं रहा जल तिमिर में नवल चांद-सा अगर बिजलियां गिर रहीं तो गिरें मचलकर सभी दीप पथ के बुझे चरण राहियों के डगर पर रुके थके दृग सभी के मुझी पर झुके किसी की सरस छांह में मैं पला रहा जल विगत की मधर याद-सा अगर बदलियां घिर रहीं तो घिरें नहीं डर मुझे आज तूफान से न तूफान से और न निर्वाण से न निर्वाण से और न अवसान से किसी का शुचिर साधना-दीप मैं अकंपित अचंचल जला हास-सा अगर छल रही चिर प्रलय, तो छले जला मैं, जली प्राण की वर्तिका चले जल शलभ, जल रही उर शिखा मुझे छू हंसी, स्वर्ण-सी मृत्तिका किसी की करुण आह का दीप मैं रहा जल चिरंतन रुचिर फूल-सा
अगर आंधियां चल रहीं तो चलें चलने दो आंधियों को; आने दो तूफानों को। तुम छोटे दीप ही सही; मिट्टी के दीए ही सही। लेकिन तुम में भी सूरज का प्रकाश है। तुम छोटे से आंगन ही सही, मगर तुम में भी विराट आकाश है। जितनी चुनौतियां होंगी, उतने ही तुम बड़े हो जाओगे।
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