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________________ तृष्णा को समझो और जो ध्यान में चलता है, उससे बड़ा कुशल कोई कलाकार नहीं है। क्योंकि ध्यान में अपने को साधना, ठीक रस्सी पर चलने जैसा ही है। बाएं गिरे, दाएं गिरे; पूरे वक्त सम्हालना पड़ता है। अब गिरे, तब गिरे। और खतरा हर वक्त! लेकिन ध्यान में जो सम्हल जाता है, एक दिन समाधिस्थ हो जाता है, फिर कोई गिरना नहीं है। तूने स्वयं को रस्सी पर सम्हालना सीखा, इतने समय में तो उग्गसेन, तू ध्यान भी सम्हाल सकता था! __जितनी देर में तुम धन कमाते हो, ध्यान भी कमाया जा सकता है। जितनी देर तुम संसार में लगाते हो, उतनी देर में परमात्मा भी पाया जा सकता है। इसी ऊर्जा से, इसी क्षमता से परम मिल सकता है। तुम क्षुद्र में गंवाते हो। कंकड़-पत्थर बीनते रहते हो, जब कि हीरे की खदानें बिलकुल पास थीं। उग्गसेन ! बुद्धिमान व्यक्ति को जीवन-मरण के पार जाने की कला सीखनी चाहिए। तू आ। मेरे पास आ। मैं तुझे वह परम कला और परम कीमिया सिखाऊंगा। क्या है वह परम कीमिया? वही इस सूत्र का अर्थ है। . 'भूत को छोड़ो, भविष्य को छोड़ो, वर्तमान को भी छोड़ो।' क्योंकि मन को छोड़ना हो—मनोभंजन करना हो तो समय को छोड़ना जरूरी है। मन है क्या? भूत की स्मृतियां; जो हो चुका उसकी स्मृतियों का जाल, स्मृति। और भविष्य की योजनाएं, भविष्य की कल्पनाएं, आकांक्षाएं। वर्तमान की चिंता, फिकर। अगर ठीक से समझो, तो मन और समय पर्यायवाची हैं। इसलिए जो भी ध्यान को उपलब्ध हुए, उन्होंने कहाः कालातीत है ध्यान; समय के पार है ध्यान। मनातीत और कालातीत एक ही अर्थ रखते हैं। तो बुद्ध ने कहा है : 'भूत को छोड़, भविष्य को छोड़, वर्तमान को छोड़-यह है असली कला-इस तरह इन्हें छोड़कर संसार के पार हो जा। मुक्त-मानस होकर, मन से मुक्त होकर, तू फिर जन्म और जरा को प्राप्त नहीं होगा।' . उग्गसेन को ऐसे वचन सुनकर बोध हुआ। और जैसे बिजली कौंधी, ऐसे भगवान के वचन उसके प्राणों में कौंधे। फिर उसने क्षणभर भी न खोया। वह रस्सी से उतर भगवान का भिक्षु हो गया। और जब मरा तो अर्हत्व को पाकर मरा। वह सच ही परम नट-विद्या को उपलब्ध होकर मरा। भगवान ने वचन पूरा किया। इसमें एक बात, अंतिम बात समझ लेनी चाहिए। यह आदमी था तो जुआरी। इसलिए मैं अक्सर कहता हूं : धर्म व्यवसायियों के लिए नहीं, जुआरियों के लिए है। यह आदमी था तो जुआरी। बाप की बड़ी संपत्ति, बाप का बड़ा उत्तराधिकार छोड़कर एक मदारी की बेटी के साथ हो लिया था। था तो आदमी हिम्मत का। गलत भी गया था, तो डरा नहीं था जाने में। दांव पर सब लगा दिया था। इस साधारण सी युवती के लिए, झोली टांगे हुए मदारी, गांव-गांव
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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