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________________ तृष्णा को समझो अब अपने विवाद का निर्णय कर लो। अगर आज यह रुपया मेरे पास न होता, तो हम उसी तरफ रह गए होते। वहां जंगली जानवरों का भय है। रात बचना मुश्किल था। नदी पार उतर गए, तो अब बच जाएंगे। अब धर्मशाला पहुंच जाएंगे। गांव आ गया। अब निश्चित होकर रात सो लेंगे। तुम क्या कहते हो? ___ वह फकीर हंसने लगा। उसने कहा ः हम धन के कारण नहीं उतरे। तुम धन दे सके उसको, एक रुपया दे सके, इस कारण उतरे। रुपया होने से नहीं उतरे, क्योंकि होने से क्या होता था! अगर तुम देने को राजी न होते। उतर सके देने के कारण। विवाद फिर अपनी जगह खड़ा हो गया! धनी तो अक्सर धन को भोग नहीं पाता। क्योंकि धन भोगना हो, तो धन को भी देना पड़ता है। उपनिषदों में परम वचन है : तेन त्यक्तेन भुंजीथाः, जिन्होंने छोड़ा, उन्होंने भोगा। संसार में भी धन छोड़ो, तो ही भोग सकते हो। यहां छोड़ना ही भोगने का सूत्र है। मगर ध्यान रखना ः जो धन इकट्ठा करने लगता है, वह खुद ही धन जैसा जड़ हो जाता है। जो पद की आकांक्षा में रहता है, उसका अहंकार घना होता चला जाता है। तुम जो चाहोगे, वही हो जाओगे। अब यह उग्गसेन नगरश्रेष्ठी का पुत्र था, सब से बड़े धनी का पुत्र था। राजगृह बिहार की सब से धनी नगरी थी। उस सब से धनी नगरी के सब से बड़े धनी का बेटा था। लेकिन एक नट-कन्या, एक मदारी की लड़की के प्रेम में पड़ गया, तो मदारी हो गया। ये छोटी-छोटी कहानियां बड़ी सूचक हैं, बड़ी मनोवैज्ञानिक हैं। इनको तुम ऐसे ही पढ़ लोगे, तो इनका मजा, इनका स्वाद तुम्हें नहीं आएगा। इनमें धीरे-धीरे उतरना। तुम जरा गौर करना। तुमने जिससे दोस्ती की है, आखिर में तुमने पाया नहीं कि तुम उसी जैसे हो गए? दोस्ती की तो बात छोड़ो, किसी से दुश्मनी भी अगर कर ली, तो भी उस जैसे हो.जाओगे। क्योंकि उसी का चिंतन करोगे। उसी का हिसाब रखोगे। वह कैसी चालें चल रहा है, वैसी चालें तुम चलोगे। उस से कैसे रक्षा करनी, इसका विचार करते रहोगे। सदा उसका विचार करते-करते तुम भी उस जैसे हो जाओगे। दुश्मन भी एक जैसे हो जाते हैं। क्योंकि दुश्मनी भी एक ढंग की दोस्ती है। नट-कन्या के खेल को देखकर उस पर मोहित हो उससे विवाह कर नटों के साथ हो लिया। सुसंस्कृत परिवार का बेटा, ऐसे गांव-गांव घूमने वाले सड़क-छाप मदारियों के साथ हो गया! मोह गिराता है। मोह उठा भी सकता है। अगर बुद्ध जैसे व्यक्ति से मोह हो जाए, तो तुम्हारी आंखें आकाश की तरफ उठने लगीं। तुमने जमीन पर सरकना बंद कर 95
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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