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एस धम्मो सनंतनो
किसी से झंझट नहीं लेते। अपने रास्ते आते, अपने रास्ते जाते। और हम सुखी नहीं हैं? तो क्या कारण होगा?
सांत्वना को ये संतोष समझ रहे हैं। इनका इरादा यह है कि बेईमान को जो बेईमानी करने से मिल रहा है, वह इनको संतुष्ट होने से मिलना चाहिए! तो फिर बेचारा बेईमान इतना कष्ट मुफ्त ही भोग रहा है! तुम कष्ट भी नहीं भोगना चाहते, उपलब्धि भी वही करना चाहते हो जो बेईमान कर रहा है।
तुम चाहते हो कि हम अपने घर में भजन-कीर्तन करते हैं, हम को लोग प्रधानमंत्री क्यों नहीं बनाते! मोरारजी भाई को क्यों बनाते हैं? तो बयासी साल हजार तरह की झंझटें भी झेलनी पड़ती हैं। कितनी धक्का-मुक्की! कहां-कहां से खींचे जाते! कहां-कहां से निकाले जाते! कहीं कामराज योजना; कहीं कुछ; कहीं कुछ! ___ मगर कुछ लोग जिद्द ही कर लेते हैं। वे कहते हैं : चाहे सौ-सौ जूते खाएं, तमाशा घुसकर देखेंगे; पर देखेंगे। चाहे कितनी पिटाई हो, मगर जाकर बीच में ही तमाशा देखना है। __ तुम चाहते हो कि तुम अपने घर में बैठे रहो और शंकरजी के सामने घंटी बजाते रहो और तुम को लोग प्रधानमंत्री बना दें। नहीं बनाते, तो तुम कहते हो, बड़ा धोखा हो रहा है। मुझ जैसा सीधा-सादा आदमी, विनम्र चित्त, निरअहंकारी और ये मगरूरजी भाई देसाई! ये प्रधानमंत्री? और मैं विनम्र, निरअहंकारी, अपने घर में बैठा हनुमान चालीसा पढ़ता हूं और कुछ करता भी नहीं हूं। मुझे लोग प्रधानमंत्री क्यों नहीं बना रहे हैं? ___अब तुम परेशान हो। तुम्हारी परेशानी...तुम ने सांत्वना को संतोष समझा। इरादे तुम्हारे भी अच्छे नहीं हैं। हनुमान चालीसा भी तुम गलत इरादे से पढ़ रहे हो। तुम सोचते हो कि शायद हनुमानजी कंधे पर बिठाकर तुम को दिल्ली ले जाएं! ___ संतोष बड़ी और बात है। संतोषी दुख जानता ही नहीं। क्योंकि संतोषी की अपेक्षा नहीं है। अपेक्षा की छाया है दुख। अपेक्षा गयी, तो दुख गया।
संतोषी केवल सुख ही जानता है। और जैसे-जैसे संतोष बढ़ने लगता है, वैसे-वैसे सुख महासुख होने लगता है। ___ 'धीरपुरुष इसी को दृढ़ बंधन कहते हैं-तृष्णा को-जो शिथिल होकर भी मनुष्य को गिराती है, जिसे तोड़ना कठिन है। धीरपुरुष अपेक्षारहित होकर तथा काम-सुखों को छोड़कर इस बंधन को तोड़ते और प्रव्रजित होते हैं।'
ये रागरत्तानुपतन्ति सोतं सयं कतं मक्कटक्को'व जालं। एतम्पि छेत्त्वान बजन्ति धीरा अनपेक्खिनो सब्बदुक्खं पहाय।।
'जो राग में अनुरक्त हैं, वे अपने बनाए स्रोत में वैसे ही फंस जाते हैं, जैसे
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