________________
तृष्णा को समझो
यह क्रांति कैसे घटी? बुद्ध ने कहाः ध्यान के जादू से।
और तो कोई जादू जगत में है ही नहीं। ध्यान का ही एकमात्र जादू है। ___ जादू! क्यों जादू कहें इसे? क्योंकि यही तुम्हें मृत्यु से अमृत में ले जाता है। और बड़ा जादू क्या होगा? मृण्मय को चिन्मय बना देता है! और बड़ा जादू क्या होगा? क्षणभंगुर को शाश्वत बना देता है! और बड़ा जादू क्या होगा? नर्क को महाआनंद में रूपांतरित कर देता है! और बड़ा जादू क्या होगा?
बुद्ध ने कहा ः ध्यान के जादू से। और तब उन्होंने बंदी की ओर उन्मुख होकर ये गाथाएं कहीं।
तसिणाय पुरक्खता पजा परिसप्पन्ति ससो'व बाधितो। सञोजनसंगसत्ता दुक्खमुपेन्ति पुनप्पुनं चिराय।।
'तृष्णा के पीछे पड़े प्राणी बंधे खरगोश की भांति चक्कर काटते हैं। संयोजनों में फंसे लोग पुनः-पुनः चिरकाल तक दुख पाते हैं।'
यो निब्बनथो वनाधिमुत्तो वनमुत्तो वनमेव धावति । तं पुग्गलमेव पस्सथ मुत्तो बंधनमेव धावति।।
.
'जो सांसारिक बंधनों से छुटकर एकांत में वास करता है और फिर एकांत को छोड़कर संसार तृष्णा के वन की ओर दौड़ता है, उसके लिए क्या कहा जाए! यही कहा जाए कि वह मुक्त होकर भी बंधन की ओर जा रहा है।'
ये उस कैदी से कहे गए वचन हैं।
न तं दल्हं बंधनमाहु धीरा यदायसं दारुज बब्बजञ्च । सारत्तरत्ता मणिकुण्डलेसु पुत्तेसु दारेसु च या अपेक्खा।।
'जो लोहा, लकड़ी या रस्सी का बंधन है, उसे बुद्धिमान पुरुष दृढ़ बंधन नहीं कहते हैं। वस्तुतः दृढ़ बंधन तो मणि, कुण्डल, पुत्र और स्त्री के प्रति इच्छा का होना
__ इच्छा ही बांधती है। इच्छा ही बंधन है। जो तृष्णा में है, वह कारागृह में है। जो कहता है : यह मुझे मिल जाए, यह मुझे मिल जाए; यह मिलेगा, तो में सुखी होऊंगा; यह नहीं मिलेगा, तो मैं दुखी होऊंगा—ऐसी जिसकी अपेक्षा है, वह बंधन में है; वह सदा दुख में ही रहेगा।
तृष्णा का अर्थ है : जैसा मैं हूं, जो मैं हूं, इससे मेरी तृप्ति नहीं। कुछ और