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________________ जीने में जीवन है किसको दंड दिलवाओगे ? तुमने शोषण नहीं किया है ? तुमने दूसरे को नहीं सताया है? तुम दूसरे की छाती पर नहीं बैठ गए हो, मालिक नहीं बन गए हो ? तुमने दूसरों को नहीं दबाया है ? तुमने वही सब किया है, मात्रा में भले भेद हों। हो सकता है तुम्हारे शोषण की प्रक्रिया बहुत छोटे दायरे में चलती हो, लेकिन चलती है। तुम जी न सकोगे। तुम अपने से नीचे के आदमी को उसी तरह सता रहे हो जिस तरह तुम्हारे ऊपर का आदमी तुम्हें सता रहा है। यह सारा जाल जीवन का शोषण का जाल है, इसमें तुम एकदम बाहर नहीं हो, दंड किसके लिए मांगोगे ? और जरा खयाल करना, दंड भी तो दुख ही देगा दूसरों को! तो तुम दूसरों को दुखी ही देखना चाहते हो ! परमात्मा भी मिल जाएगा तो भी तुम मांगोगे दंड ही ! दूसरों को दुख देने का उपाय ही! तुम अपनी शांति तक छोड़ने को तैयार हो ! मैंने सुना है, एक पुरानी अरबी कथा है। दो मित्र थे, एक अंधा और एक लंगड़ा। साथ रहते और साथ ही भीख मांगते। साथ रहना जरूरी भी था, क्योंकि अंधा देख नहीं सकता था, लंगड़ा चल नहीं सकता था। तो अंधा लंगड़े को अपने कंधे पर बिठाकर चलता था। भीख अलग-अलग मांगी भी नहीं जा सकती थी, संग-साथ में ही सार भी था, साझेदारी भी । फिर जैसे सभी साझेदारों में झगड़े हो जाते हैं, कभी-कभी उनमें भी झगड़े हो जाते थे। कभी लंगड़ा ज्यादा पैसे पर कब्जा कर लेता, कभी अंधा ज्यादा पैसे पर कब्जा कर लेता । कभी अंधा चलने से इनकार कर देता, कभी लंगड़ा कहता, अभी आराम करना है, अभी मेरी आंख काम में न आएगी । स्वाभाविक । जैसे सभी साझेदारियों में झगड़े होते हैं, उनमें भी झगड़े हो जाते थे । एक दिन तो बात ऐसी बढ़ गयी कि दोनों ने एक-दूसरे को डटकर पीटा। यह भी ठीक है, सभी धंधे में होता है। भगवान को बड़ी दया आयी - पुरानी कहानी है, उन दिनों भगवान आदमी को ज्यादा समझता नहीं था । अब तो दया भी नहीं आती, क्योंकि आदमी ऐसा मूढ़ है कि इस पर दया करने से भी कोई सार नहीं । ऐसी ही घटनाएं बार-बार घटीं और भगवान भी धीरे-धीरे आदमी की मूढ़ता को समझ गया । अब इतनी जल्दी दया नहीं करता। भगवान को बड़ी दया आयी, भगवान ने सोचा कि अंधे को अगर आंखें और लंगड़े को अगर पांव दे दिए जाएं तो कोई एक-दूसरे का आश्रित न रहेगा, एक-दूसरे से मुक्त हो जाएंगे और इनके जीवन में शांति होगी। भगवान प्रगट हुआ और उसने उन दोनों से कहा कि तुम वरदान मांग लो, तुम्हें जो चाहिए हो मांग लो। क्योंकि स्वभावतः, भगवान ने सोचा कि अंधा आंख मांगेगा, लंगड़ा पैर मांगेगा। मगर नहीं, आदमी की बात पूछो ही मत ! उन्होंने लंगड़े को दर्शन दिया, पूछा कि तू मांग ले, तुझे क्या मांगना है ? लंगड़े ने कहा - भगवान, उस अंधे को भी लंगड़ा बना दो। चौंके होंगे! फिर अंधे के सामने प्रगट हुए। अंधे ने कहा - प्रभु, उस लंगड़े को अंधा बना दो। 43
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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