SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो लेना, तब तुम्हें समझ में आएगा कि कितना मल-मूत्र भरे हुए हम चल रहे हैं। यह हमारे शरीर की स्थिति है। बुद्ध कहते हैं, इस स्थिति का बोध रखो। यह बोध रहे तो धीरे-धीरे शरीर से तादात्म्य टूट जाता है और तुम उसकी तलाश में लग जाते हो जो शरीर के भीतर छिपा है, जो परमसुंदर है। उसे सुंदर करना नहीं होता, वह सुंदर है। उसे जानते ही सौंदर्य की वर्षा हो जाती है। और शरीर को सुंदर करना पड़ता है, क्योंकि शरीर सुंदर नहीं है। कर-करके भी सुंदर होता नहीं है। कभी नहीं हुआ है। कभी नहीं हो सकेगा। तृतीय दृश्य यह बहुत अनूठा सूत्र है। बुद्ध के अनूठे से अनूठे सूत्रों में एक। इसे खूब खयाल से समझ लेना। प्रभातवेला, आकाश में उठता सूर्य, आम्रवन में पक्षियों का कलरव, भगवान जेतवन में विहरते थे। उनके पास ही बहुत से आगंतुक भिक्षु भगवान की वंदना कर एक ओर बैठे थे। उसी समय लव कुंठक भद्दीय स्थविर भगवान से विदा ले कुछ समय के लिए भगवान से दूर जा रहे थे। उन्हें जाते देख भगवान ने उनकी ओर संकेत कर कहा-भिक्षुओ, देखते हो इस भाग्यशाली भिक्षु को? वह माता-पिता को मारकर दुखरहित होकर जा रहा है। माता-पिता को मारकर! वे भिक्षु भगवान की बात सुनकर चौंके, चौंककर एक-दूसरे का मुंह देखने लगे कि भगवान ने यह क्या कहा? माता-पिता को मारकर दुखरहित होकर जा रहा है, इस भाग्यशाली भिक्षु को देखो! उन्हें तो अपने कानों पर भरोसा नहीं हुआ! माता-पिता की हत्या से बड़ा तो कोई और पाप नहीं है। भगवान यह क्या कहते हैं? कहीं कुछ चूक है। या तो हम सुनने में चूक गए, या भगवान कहने में चूक गए। माता-पिता के हत्यारे को भाग्यशाली कहना, यह कैसी शिक्षा है? भगवान होश में हैं? ___अत्यंत संदेह और विभ्रम में पड़े उन्होंने भगवान से पूछा- तथागत क्या कह रहे हैं? ऐसी बात न तो आंखों देखी, न कानों सुनी। भगवान ने तब कहा-इतना ही नहीं, इस अपूर्व भिक्षु ने और भी हत्याएं की हैं; और बड़ी सफलता से और बड़ी कुशलता से। हत्या करने में इसको कोई सानी नहीं है। भिक्षुओ, तुम भी इससे कुछ सीख लो। तुम भी इस जैसे बनो और तुम भी दुख-सागर के पार हो जाओगे। भिक्षुओं ने कहा-आप कहते क्या हैं! हत्यारे की प्रशंसा कर रहे हैं। और बुद्ध ने कहा-इतना ही नहीं भिक्षुओ, इसने अपनी भी हत्या कर दी है। यह आत्मघाती भी है। यह बड़ा भाग्यशाली है! और तब उन्होंने ये सूत्र कहे मातरं पितरं हत्वा राजानो द्वे च खत्तिये। 28
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy