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एस धम्मो सनंतनो
गया, भिखारी हो गया, अब मुझे कोई सम्राट होने का आकर्षण नहीं है, अब मैं प्रथम नहीं होना चाहता, मैं प्रतियोगिता से हट गया। प्रतियोगिता - त्याग की ही सूचना भिक्षापात्र है, कि मैं दीन-हीन हो गया, अब मैं भीख मांगकर ले लूंगा, दो रोटी मिल जाएं बस बहुत हैं। मगर वह भी भिक्षापात्र को सजाता है, वह भी उस पर बड़ी करी करता है । उसमें भी झंझट चलती है ।
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मैं तेरापंथी जैन मुनियों के एक सम्मेलन में सम्मिलित हुआ, तो वहां जिसके पास जितना सुंदर भिक्षापात्र, जितना कारीगरी से बनाया भिक्षापात्र, वह उतना बड़ा भिक्षु, वह उतना बड़ा मुनि । तेरापंथी बड़ी मेहनत करते हैं, उनका भिक्षापात्र सुंदर होता है, चित्त लुभा जाए इतना सुंदर बनाते हैं।
अब भिक्षापात्र, उसको इतना सुंदर बनाने का क्या प्रयोजन है ! पर आदमी ऐसा है कि भीतर तो वही रहता है, वह जहां भी जाएगा वहीं अपने भीतर के लिए कुछ न कुछ उपाय खोज लेगा; मन फिर नए जाल बुनने लगेगा ।
बुद्ध ने उन्हें बुलाया, उन्हें खूब डांटा। बुद्ध डांटते हों, ऐसा सुनकर हमें हैरानी होती है । और न केवल डांटा, डांटते समय अति कठोर भी थे । यह कठोरता करुणा का ही रूप है। गुरु को कठोर होना ही पड़ेगा, बहुत बार उसे अति कठोर भी होना पड़ेगा। क्योंकि हमारी नींद इतनी गहरी है कि अगर वह न चिल्लाए तो शायद हम सुनेंगे भी नहीं। अगर वह न झकझोरे, तो शायद हम जागेंगे भी नहीं। हमारे सपने मधुर हैं और हम सपनों में बड़े डूबे हुए हैं।
बुद्ध ने कहा- भिक्षुओ, किसलिए आए हो और क्या कर रहे हो ?
तुम्हें ध्यान की फुर्सत ही नहीं है, समय ही नहीं है, तुम तो भूल ही गए कि ध्यान के लिए आए थे। संन्यास का मौलिक लक्ष्य ध्यान है। ध्यान से संन्यास निकलता है, संन्यास से और ध्यान निकलना चाहिए । फिर ध्यान से और संन्यास, फिर और संन्यास से और ध्यान — ध्यान और संन्यास एक-दूसरे को बढ़ाते चले जाएं, तो तुम्हारी गति होती है। ध्यान और संन्यास दो पंख हैं, जिनसे परमात्मा तक पहुंचा जा सकता है। लेकिन ध्यान ही भूल गए तो संन्यास का कोई मूल्य नहीं है।
मन के जाल समझो भिक्षुओ, बुद्ध ने कहा । सोते-जागते, उठते-बैठते होश रखो भिक्षुओ, नहीं तो पीछे पछताओगे। अभी समय है, अभी कुछ कर लो ।
और तब उन्होंने ये सूत्र कहे, 'जो करने योग्य है उसको तो छोड़ देता है, लेकिन जो न करने योग्य है उसे करता है ... । '
भिक्षापात्र पर खुदाई कर रहे हो ! कि पादुका पर खुदाई कर रहे हो ! तुम्हें होश है, क्या कर रहे हो ? यह सारा समय व्यर्थ गया । पादुका यहीं पड़ी रह जाएगी, भिक्षापात्र यहीं पड़े रह जाएंगे। जैसे महल पड़े रह जाएंगे, वैसे ही झोपड़ियां भी पड़ी रह जाएंगी, सब यहीं पड़ा रह जाएगा। कुछ ऐसा कमाओ जो मौत के पार तुम्हारे साथ जा सके। वही करने योग्य है जो मौत के पार साथ जा सके।
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