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जीवन का परम सत्य : यहीं, अभी, इसी में
का सपना पैदा हो जाए। शायद किसी जले दीए को देखकर बुझे दीए को भी स्मरण आ जाए कि मैं भी जल सकता हूं-तेल है, बाती है, सब है, कमी क्या है?
इस बूढ़े महावत ने बड़ी कला की। बड़ा होशियार रहा होगा। बड़ा बुद्धिमान रहा होगा। बैंड-बाजे बजवा दिए। उन बैंड-बाजों की चोट–हाथी भूल ही गया होगा, कैसी कीचड़! कैसा तालाब! एक क्षण को जैसे सारी बात विस्मृत हो गयी। भविष्य, अतीत, सब विस्मृत हो गया। उन बैंड-बाजों की चोट में वर्तमान में आ गया होगा। देह को भूल गया, जाग गयी भीतर की स्मृति कि मैं कौन हूं—महा बलशाली हो गया।
युद्ध के नगाड़ों की आवाज सुन जैसे अचानक बूढ़ा हाथी फिर जवान हो गया और कीचड़ से उठकर किनारे पर आ गया।
बुद्ध का बड़ा प्रसिद्ध वचन है, तुम वही हो जाते हो जो तुम सोचते हो कि तुम हो! पुरानी बाइबिल कहती है, एज ए मैन थिंकेथ, जैसा आदमी सोचता वैसा ही हो जाता। तुम्हारा विचार ही तुम्हारी नियति है। तुम्हारा विचार ही तुम्हारा भाग्य-निर्माता है। सोचता था कमजोर हो गया, बूढ़ा हो गया, तो बूढ़ा था। अब इस नगाड़े की
आवाज में भूल गया और याद आ गयी पुरानी और सोचा कि मैं महा बलशाली, मैं हस्तिराज, मैंने इतने युद्ध देखे, इतने युद्ध जीता, भूल ही गया, कीचड़ इत्यादि कैसे छूट गयी पता ही नहीं चला, छूटने की चेष्टा भी नहीं करनी पड़ी। उस स्मरण में ही मुक्ति हो गयी।
इसलिए बुद्ध कहते हैं, सम्यक-स्मृति मुक्ति है। तुम्हें याद आ जाए कि तुम कौन हो। तुम परमात्म-स्वरूप हो। अहं ब्रह्मास्मि, जैसा उपनिषद कहते हैं कि मैं ब्रह्म हूं; कि अलहिल्लाज मंसूर कहता है, अनलहक, कि मैं सत्य हूं; कि महावीर कहते हैं, अप्पा सो परमप्पा, जो आत्मा है वह परमात्मा है।
वह उठकर किनारे आ गया। इतनी सरल बात, ऐसे चला आया जैसे कीचड़ . इत्यादि थी ही नहीं। वह जैसे भूल गया अपनी वृद्धावस्था, अपनी कमजोरी। उसका सोया योद्धा जाग उठा और यह चुनौती काम कर गयी।
चुनौती काम करती है। बुद्धपुरुष तुम्हें चुनौती देते हैं। बुद्धपुरुष तुम्हें भयभीत नहीं करते। जो भयभीत करे, समझ लेना वह बुद्धपुरुष नहीं है। जो तुम्हें डराए, धमकाए, वह तो राजनीतिज्ञ है। जो कहे कि नरक भेज देंगे, वह तो बड़ी राजनीति चल रहा है। जो कहता है स्वर्ग में बिठा देंगे, वह तो बड़ी राजनीति चल रहा है। लोभ और भय तो राजनैतिक दांव-पेंच हैं। बुद्धपुरुष चुनौती देते हैं। बुद्धपुरुष पुकारते, बुद्धपुरुष संगीत पैदा करते तुम्हारे चारों तरफ, परलोक का संगीत, कि उस संगीत की चोट में तुम्हारे भीतर कुछ जग जाए।
नगाड़े, बैंड-बाजे काम कर गए। हाथी उस भाषा को समझ गया। समझा उसने युद्ध में हूं। क्षण भी देर न लगी। ऐसा भी नहीं कि सोचा-विचारा कि अब क्या करूं,
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