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________________ मृत्यु की महामारी में खड़ा जीवन कम है। तो धन छीनेगा तो धन इकट्ठा कर पाएगा। यह आदमी दूसरों को दुख दिए बिना धनी न हो सकेगा। और धन पाने से जो सुख मिलने वाला है, दो कौड़ी का है। और जितना दुख दिया है, उसके जो दुष्परिणाम होंगे, अनंत समय तक उसकी जो प्रतिक्रियाएं होंगी, वे बहुत भयंकर हैं। __एक दूसरा आदमी ध्यान में सुख लेता है। ध्यान और धन में यही खबी है। ध्यान जब तुम करते हो तो तुम किसी का ध्यान नहीं छीनते। तुम्हारा ध्यान बढ़ता जाता है, किसी का ध्यान छिनता नहीं। ___ तो बुद्ध कहेंगे, अगर ध्यान और धन में चुनना हो तो ध्यान चुनना, यह अप्रतियोगी है, इसकी किसी से कोई स्पर्धा नहीं है। और तुम्हारा आनंद बढ़ता जाएगा। और आश्चर्य की बात यह है कि तुम जितने आनंदित होते जाओगे, अनायास तुम दूसरों को भी आनंद देने में सफल होने लगोगे, समर्थ होने लगोगे। जो है, उसे हम बांटते हैं। दुखी आदमी दुख देता है, सुखी आदमी सुख देता है—देना ही पड़ेगा। जब फूल खिलेगा और गंध निकलेगी तो हवाओं में बहेगी ही। जब तुम्हारा ध्यान सघनीभूत होगा, तो तुम्हारे चारों तरफ गंध उठेगी। सुख दोगे तो सुख मिलेगा। ऐसा सुख खोजना जो किसी के दुख पर आधारित न होता हो, यही बुद्ध की मौलिक शिक्षा है। और फिर अल्प भी सुख मिले आज, अल्प भी शायद छोड़ना पड़े कल के महासुख के लिए, तो उसे भी छोड़ देना। अल्प मिले तो अल्प ले लेना, अल्प छोड़ना पड़े तो छोड़ देना, मगर एक खयाल रखना-जीवन का पूरा विस्तार खयाल रखना। चीजें एक-दूसरे से संयुक्त हैं। अंतिम परिणाम क्या होगा, उस पर ध्यान रहे। और ऐसा सुख कमाना, जो तुम्हारा अपना हो, जिसके लिए दूसरे को दुखी नहीं करना पड़ता है। अब एक आदमी को राजनेता बनना है, तो उसे दूसरों को दुखी करना होगा। अब इंदिरा और मोरारजी दोनों साथ-साथ सुखी नहीं हो सकते, इसका कोई उपाय नहीं है। कोई न कोई दुखी होगा। तो बुद्ध कहते हैं, ऐसी दिशा में मत जाना, जहां किसी को बिना दुखी किए तुम सुखी हो ही न सको। हजार और उपाय हैं जीवन में आनंदित होने के। ____ अब एक आदमी बांसुरी बजाता हो, तो इससे किसी का कुछ लेना-देना नहीं है, यह अपने एकांत में बैठकर बांसुरी बजा सकता है। एक आदमी नाचता हो, यह एकांत में नाच सकता है। एक आदमी ध्यान करता हो, यह एकांत में ध्यान कर सकता है, इसका किसी से कुछ लेना-देना नहीं है। ऐसे सुख खोजना जो निजी हैं। और ऐसे बहुत सुख हैं जो निजी हैं। वस्तुतः वे ही सुख हैं। क्योंकि दूसरे को दुखी कर कैसे सुखी होओगे? कैसे सुखी हो सकते हो? पूरे वक्त पीड़ा भीतर बनी रहेगी कि दूसरे को दुख दिया है, बदला आता होगा, 21
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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