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________________ एस धम्मो सनंतनो किनारे पहुंच गए थे। उन्होंने सारी घटना भगवान को आकर सुनायी। और जानते हैं भगवान ने उनसे क्या कहा? ____ भगवान ने कहा—भिक्षुओ, उस अपूर्व हाथी से कुछ सीखो। उसने तो कीचड़ से अपना उद्धार कर लिया, तुम कब तक कीचड़ में फंसे रहोगे? और देखते नहीं कि मैं कब से संग्राम-भेरी बजा रहा हूं? भिक्षुओ, जागो और जगाओ अपने संकल्प को। वह हाथी भी कर सका। वह अति दुर्बल बूढ़ा हाथी भी कर सका। क्या तुम न कर सकोगे? मनुष्य होकर, सबल होकर, बुद्धिमान होकर क्या तुम न कर सकोगे? क्या तुम उस हाथी से भी गए-बीते हो? चुनौती लो उस हाथी से, तुम भी आत्मवान बनो और एक क्षण में ही क्रांति घट सकती है। एक क्षण में ही। एक पल में ही। स्मरण आ जाए, भीतर जो सोया है जग जाए, तो न कोई दुर्बलता है, न कोई दीनता है। स्मरण आ जाए, तो न कोई कीचड़ है, न तुम कभी फंसे थे, ऐसे बाहर हो जाओगे। भिक्षुओ, अपनी शक्ति पर श्रद्धा चाहिए। त्वरा चाहिए भिक्षुओ, तेजी चाहिए। एक क्षण में काम हो जाता है, वर्षों का सवाल नहीं है। लेकिन सारी शक्ति एक क्षण में इकट्ठी लग जाए, समग्रता से, पूर्णरूपेण। और बुद्ध ने फिर कहा-और सुनते नहीं, मैं संग्राम-भेरी कब से बजा रहा हूं? तभी उन्होंने ये गाथाएं कही थीं। ___ यह छोटी सी घटना, रोज ऐसी घटनाएं घटती हैं, लेकिन बुद्ध ने बड़ा इत्र खींचा। बड़ा इत्र निचोड़ा! पहले तो इस छोटी सी कहानी को ठीक-ठीक हृदयंगम हो जाने दें। ____ यह हाथी साधारण हाथी न था। महाबलवान था। तो खयाल रखना, महाबलवान की भी ऐसी दशा हो जाती है। इसलिए बल से कभी धोखा मत खाना। आज बलवान हो, कल निर्बल हो जाओगे। आज बड़ी शक्ति है, कल सब शक्ति क्षीण हो जाएगी। आज जवान हो, कल बूढ़े हो जाओगे। ___ एक बूढ़ा आदमी रास्ते से जा रहा था। बुद्ध एक वृक्ष के नीचे बैठे थे। उस बूढ़े के जर्जर शरीर को, उसके कंपते हाथ को, पैर को देखकर एक भिक्षु हंसने लगा-जवान था अभी। बुद्ध ने कहा-भिक्षुओ, हंसो मत, नहीं तो लोग फिर तुम पर हंसेंगे। यही दशा तुम्हारी हो जाएगी, यह तुम्हारा भविष्य है। इस बूढ़े को इस भांति चलते देखकर हंसो मत। इसके पहले कि यह दशा तुम्हारी हो जाए, कुछ कर लो। हंसी में तो कहीं यह भाव छिपा ही है कि यह मेरे साथ कभी नहीं होगा। देखते नहीं, किसी को हारा देखते हो, तुम हंसते हो। तुम यह कभी सोचते नहीं कि जो हार आज इस आदमी की हो गयी, कल यह भी जीता हआ था। आज जो चारों खाने चित्त पड़ा है, कल न मालूम कितने लोगों को इसने चारों खाने चित्त किया था। तुम आज हो सकता है किसी की छाती पर बैठे हो, यह सदा रहेंगी नहीं बात। यहां सदा कुछ भी नहीं रहता, यहां चीजें रोज बदलती हैं, प्रतिपल बदलती हैं। आज जो शक्ति 318
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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