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जीवन का परम सत्य : यहीं, अभी, इसी में
अप्पमादरता होथ स-चित्तमनुरक्खथ। दुग्गा उद्धरथत्तानं पंके सत्तोव कुंजरो।।२६९।।
सचे लभेथ निपकं सहायं सद्धिं चरं साधुविहारिधीरं। अभिभुय्य सब्बानि परिस्सयानि चरेय्य तेनत्तमनो सतीमा।।२७०।।
नो चे लभेथ निपकं सहायं सिद्धिं चरं साधुविहारिधीरं। राजाव रटुं विजितं पहाय एको चरे मातंगरचेव नागो।।२७१।।
एकस्स चरितं सेय्यो नत्थि बाले सहायता। एको चरे न च पापानि कयिरा। अप्पोस्सुक्को मातंगर व नागो।।२७२।।
सुखं याव जरा सीलं सुखा सद्धा पतिट्ठिता। सुखो पञाय पटिलाभो पापानं अकरणं सुखं ।।२७३।।
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