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एस धम्मो सनंतनो
बुद्ध ने अपने पिछले जन्मों के बुद्धों का उल्लेख किया है-चौबीस बुद्धों का उल्लेख किया है। एक उल्लेख में कहा है कि उस समय के जो बुद्धपुरुष थे, उनके पास मैं गया। तब गौतम बुद्ध नहीं थे। झुककर बुद्धपुरुष के चरण छुए। उठकर खड़े हुए थे कि बहुत चौंके, क्योंकि बुद्ध ने झुककर उनके चरण छू लिए। तो वे बहुत घबड़ाए, उन्होंने कहा, मैं आपके चरण छुऊं, यह तो ठीक है; अंधा आंख वाले के सामने झुके, यह ठीक है; लेकिन आपने मेरे चरण छुए, यह कैसा पाप मुझे लगा दिया! अब मैं क्या करूं?
वे बुद्ध हंसने लगे। उन्होंने कहा, तुझे पता नहीं, देर-अबेर तू भी बुद्ध हो जाएगा। हम शाश्वत में रहते हैं, क्षणों की गिनती हम नहीं रखते; मैं आज हुआ बुद्ध, तू कल हो जाएगा, क्या फर्क है? आज और कल तो सपने में हैं। आज और कल के पार जो है-शाश्वत-मैं वहां से देख रहा हूं।
फिर तो जब बुद्ध को स्वयं बुद्धत्व प्राप्त हुआ-गौतम को बुद्धत्व प्राप्त हुआ तो पता है उन्होंने क्या कहा? उन्होंने कहा कि जिस दिन मुझे बुद्धत्व प्राप्त हुआ, उस दिन मैंने आंख खोली और तब मैं समझा उस पुराने बुद्ध की बात, ठीक ही तो कहा था, जिस दिन मुझे बुद्धत्व उपलब्ध हुआ उस दिन मैंने देखा कि सबको बुद्धत्व की अवस्था ही है-उनको पता नहीं है लोगों को, लेकिन है तो अवस्था। अब मेरे पास अंधे लोग आते हैं, लेकिन मैं जानता हूं, आंखें बंद किए बैठे हैं। आंखें उनके पास हैं-उन्हें पता न हो, उन्होंने इतने दिन तक आंखें बंद रखी हैं कि भूल ही गए हों, कभी शायद खोली ही नहीं, शायद बचपन से ही बंद हैं, शायद जन्मों से बंद हैं।
बुद्ध कहते हैं, अब मेरे पास कोई आता है, तो वह सोचता है कि उसे कुछ पाना है; और मैं उसके भीतर देखता हूं कि ज्योति जली ही हुई है, जरा नजर भीतर ले जानी है। जरा अपने को ही तलाशना और अपने को ही खोजना और टटोलना है।
और आखिरी प्रश्नः
सत्य की खोज का अंत कहां है?
सत्य का अर्थ ही होता है, अनंत। सत्य की खोज का कोई अंत नहीं होता। सत्य
की खोज का प्रारंभ तो होता है, अंत नहीं होता है। यात्रा शुरू तो होती है, पूरी नहीं होती। पूरी हो नहीं सकती। क्योंकि पूरी अगर यात्रा हो जाए, तो उसका अर्थ होगा कि सत्य भी सीमित है। तुम आ गए आखिरी सीमा पर, फिर उसके पार क्या होगा?
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